तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Wednesday 22 November 2017

एक स्वप्न नया...


राहें नई..
आयाम नया
हुई विधा नयी
पर कलम वही...

अनुभव नए
शब्द नए
दर्द भी नया
पर कलम वही...


मनन नया
चिन्तन नया
भाव नये
पर कलम वही

दवात नया
कागज नयी
सियाही नयी
पर कलम वही

डायरी नयी
कव्हर नया
पन्ना कोरा
पर कलम वही

एक स्वप्न नया
एक कवि नया
एक कविता नयी
पर कलम वही...

-यशोदा
मन की उपज


Thursday 16 November 2017

रूठे हैं अपने ही.....



रूठे हैं अपने ही
तो हुआ क्या
साथ ही तो छूटा
तो हुआ क्या
एक तिनका ही टूटा 
नीड़ का ...बस
एक पुल ही टूटा 
उम्मीदों का
हुई राहें
बेगानी.
उलझकर काँटों से
बनी दर्द की 
नयी एक कहानी
कोई ज़ख़्म पुराना
हुआ ताजा
राह में ज़िन्दगी के
पर,तुम न हो ख़फ़ा
खुद से ज़रा भी
है न रास्ता...
देखो टटोलकर
बटोरकर
हौसला
देखो पलट कर
वो साया है
तुम्हारा ही..
तलाशो उसे
अपने भीतर
भूलकर अंधेरे को
जला लो फिर से
एक बाती 
वजूद की 
शिनाख्त के लिए
अंतर्मन के कोने में
-यशोदा
मन की उपज


Saturday 11 November 2017

समाई हुई हैं इसी जिन्दगी में



क्या है...
ये कविता..
क्यों लिखते हैं....
झांकिए भीतर
अपने जिन्दगी के
नजर आएगी  एक
प्यारी सी कविता

सुनिए ज़रा
ध्यान से...
क्या गा रही है 

ये कविता....
देखिए इस नन्हें बालक
की मुस्कुराहट को
नज़र आएगी एक
प्यारी सी
मुस्काती कविता....

दिखने वाली
सभी कविताएँ

जिनमें..
हर्ष है और
विषाद भी है

सर्जक है
विध्वंसक भी है

इसमे संयोग है...
और वियोग भी है

है पाप भी
और प्रेम का
प्रदर्शन का
संगम है

समाई हुई हैं
इसी जिन्दगी में

ये प्यारी सी 
कविता
-यशोदा
मन की उपज
 


Thursday 9 November 2017

पन्ना एक पलटने के बाद....


भाषा और
ज्ञान के बाद भी
बाकी है बहुत कुछ
ये भाषाएँ
ये ज्ञान की बातें
रहने दीजिए..सीमित
समझता है कौन
आज के इस युग में

इन बातों को...
युग की बात को
युग तक ही रखें...

आज-कल..
इस तरह की भाषा
और ज्ञान भी इसी
तरह का चाहिए..
मसलन..

मौसम मन का
हो जाता है अजीब...
रहता है हरदम...
आवाज के बगैर..
रहता है दर्द 
रिसता है मन का
बुझती सी है
खुशियाँ..
आँगन की...
पन्ना एक पलटने के बाद
आ जाती वापस...
सुगंध एक मादक सी
काफूर हो जाता है
दर्द मन का..

खिल जाते हैं फूल
बिखरता है मकरंद
-यशोदा
मन की उपज





Tuesday 7 November 2017

भूल-भुलैय्या......


भाषा में 
होता है ज्ञान
और...
अपना ज्ञान भी 

होता है भाषा का
छोटे शब्दों में कहिए तो
भाषा यानि
ज्ञान भी
न मौन है
भाषा
और न ही
ज्ञान मौन है
एक पहचान है
भाषा...
जो अपने आप में
पूर्णता तक ..
पहूँचती है

...
पहुँच है तो
एक मार्ग के साथ
और एक ही भाषा
होती ही नही मार्ग की

मौन होते हैं कई
बोलिया भी है कई

और अंततः
यही होता है
ज्ञान...

-यशोदा
मन की उपज

Monday 6 November 2017

ऐसे ही अज्ञानी सर्वत्र हैं....


ज्ञान... 
किसी घराने की 
अनुशंसा नहीं कि
किसी ने कहा और 
कोई अमर हो गया
कालजयी बन गया
इतना भी नहीं तो 
वर्ष का सर्वश्रेष्ठ हो गया....
बाज़ार इसी तरह 
मूर्खों की मतिभ्रष्ट करता है....
बाज़ार को जो 
पीकदान न समझे 
वह ज्ञानी नहीं 
और ऐसे ही 
अज्ञानी सर्वत्र हैं....

बहरहाल.....
ज्ञान और भाषा 
दोनों भले ही 
किसी स्तर पर 
मौन हों, 
पर तब 
मौन ही भाषा 
और वह
ज्ञान की रंगत का 
प्रतिनिधित्व करता है ।
-यशोदा
मन की उपज

Sunday 5 November 2017

ज्ञान की भाषा....मन की उपज



ज्ञान की....भाषा
ज्ञान होता है
और इसे पाएं 
कैसे...
एक प्रश्न है जटिल
....
कहा जाता है
भाषा से होती है
पैदाइश ज्ञान की
ये भी कहते हैं 
भाषा का अपना 
ज्ञान भी होता है ।
छोटे शब्दों में 
भाषा यानी ज्ञान भी ।
....
भाषा न तो 
मौन है
न ही मौन है ज्ञान
एक पहचान है
भाषा..जो
पहुंच रखती है
अपने साथ
पूर्ण रूप से
हमारे मन तक
....
भाषा पहुंच रखती है
एक मार्ग के साथ
और उस मार्ग की
भाषा एक नहीं होती
.........
भाषाएँ रहती है कई
मौन भी
बोलियाँ भी
और..
माने सही तो
इसे ही कहते है ज्ञान
-मन की उपज

Saturday 4 November 2017

सरकारी रचनाकार...मन की उपज


सरकारी रचनाकार
सरकारी होकर
जीता कम है
पर ...
मरता अधिक है

सरकारी होना
रचनाकार का
जीत नहीं है 
वरन् करारी हार है
सरकार की

वजह.. यही
सरकारी रचनाकार ..
असंतुष्ट हो....तो
नज़र आए हैं
ज़मीदोज़ करते 

सरकार को 

वजह..

माया..
सत्ता है 
सरकार की
और यही..
माया....पगला
देती है रचनाकार को
और..पगला रचनाकार
रचता कब है ! 

माया की सत्ता पर... 
जल..
बिखेर देता है ।
-मन की उपज




Thursday 2 November 2017

सुख या फिर ख़ुशी......मन की उपज

चुनते हैं हम
सुख या फिर
ख़ुशी..
रह कर भी
शिविर में ..
प्रताड़नाओं के
हम मन के
मौसम को... 
बासन्ती बना सकते हैं
कोई इन्सान..
कोई वस्तु 
या फिर 
प्रक्रिया हो 
कोई भी....
इतनी बलशाली नहीं
कि हमारे मन पर
कब्ज़ा कर सके
वो भी बगैर हमारी 
मर्जी....और हम
मन से..करते हैं 
कोशिश...और
तलाश लेतें हैं
खुशियाँ...
-मन की उपज
#हिन्दी दिवस