tag:blogger.com,1999:blog-19892195516244305942024-03-17T02:21:21.281-07:00धरोहरyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.comBlogger135125tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-10661661424217444522024-02-24T15:00:00.000-08:002024-02-24T15:00:00.158-08:00'साहित्य' अलग है, 'भाषा' अलग है भाषा में होता है ज्ञानऔर...अपना ज्ञान भी होता है भाषा काछोटे शब्दों में कहिए तोभाषा यानिज्ञान भीन मौन हैभाषाऔर न हीज्ञान मौन हैएक पहचान हैभाषा...जो अपने आप मेंपूर्णता तक ..पहूँचती है...पहुँच है तोएक मार्ग के साथऔर एक ही भाषाहोती ही नही मार्ग कीमौन होते हैं कईबोलिया भी है कईऔर अंततःयही होता हैज्ञान.......भाषासब की होती हैसब की अपनी भाषा होती है,सब भाषा में ही होते हैं,पर......yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-5649066227900724512024-02-22T23:38:00.000-08:002024-02-23T19:30:38.474-08:00 झूठ छलकाती गागर ..साजिशों का बाजार हैसौदा करूं किसका विधाता क्या यही संसार है।।कांटो पर चलना आसान है दोस्तों यहांफूलों से दर्द की खुशबू आती यही संसार हैं।। समझाउं दिल को यहां कैसे हौसलों की उड़ानहर कदम पर दिखते यहां सैयाद ही बेशुमार हैं।।जज्बातों से खेलना,है फ़ितरत इंसान कीलम्हा लम्हा दुरूह क्या यही जीवन सार है।।अंधेरे ही अंधेरे उजाले को खोजने जाएं yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-529854006116582021-06-19T00:47:00.001-07:002021-06-19T00:47:00.228-07:00कोई कवि नहीं था,रावण के राज्य मेंकोई कवि नहीं था रावण के राज्य में भाषा थी सिर्फ़ लंकाईजो रावण और उसके क़रीबी दैत्य बोलते थेराम !तुम्हारे नहीं रहने के बाद भीतुम हो सर्वत्र,तो इसलिए भीतुम साहित्य में होकेवल भाषा में नहींवो भीइसलिए ही कि तुम्हारे साथ कवि थे ! भाषा का अमर रसकवि के पास ही होता है,केवल दरबारी भाषा बोलने वाली जनता के पास नहीं राम !तुम और तुम्हारे राज्य कीभाषा भी बची हुई हैवह तो केवलyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com28tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-52406205509117113802020-12-16T23:14:00.003-08:002020-12-16T23:16:38.384-08:00रसहीन उत्सवबीत गईफीकी दीपावलीउत्साहविहीनसुविधा विहीनयंत्रवत जीवन जिया एक मशीन की तरहसुबह से शाम तकरात में भी सोने के पहलेएक चिंतन किकल की कल-कलमन में असंतोषखुशियाँ सारी समाप्त,मास्क पहननेऔर हाथ धोने मेंबची खुची कसरचढ़ गई बनकर भेंटइस कहर भरीविदेशी विषाणुओं रचितमहामारी कोरोना की भेटघर पर रहकर मानवमहज निसहाय 'औ'किस्से -कहानी तकरह गया सीमितयह महोत्सव दीपावली कारस्म अदाई हो गई है..-यशोदातस्वीर क्या बोले समूहyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-70875754473634599652020-10-25T22:01:00.002-07:002020-10-25T22:01:15.934-07:00नारी की आकांक्षाएक स्त्री के लिएप्रेम से बढ़कर भीकुछ हो सकता है,तो वो है सम्मानया रिस्पेक्ट..।क्षणिक हो सकता हैप्रेम ..परसम्मान नहीं होताक्षणिक..वो क्योंदिखावटी हो सकता हैप्रेम....परसम्मान नहींएक दिलचस्प बातकि ईश्वर ने स्त्री कोऐसी शक्ति दी हैजिससे वहपढ़ सकती हैकिसी भी पुरुष के भावों कोऔर पुरुष द्वारा दिया गयासम्मान भाव कोस्थापित कर लेती हैअपने मन में वह स्त्रीशायद इसी लिएस्त्री से दिखावा करनासंभव नहीं..।-मनyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-351050725265567392020-05-10T01:44:00.000-07:002020-05-10T01:44:00.927-07:00वक़्त की हर गाँठ पर ....मन की उपज
वक़्त की
हर गाँठ पर
हँसते-मुस्कुराते जीने
के लिए
कुछ संज़ीदगी भी
जरुरी है।
ये जो दौर है
महामारी का
वायरस के डंक से
च़िहुँककर
दूर छिटकना
लॉकडाउन के पिंजरें में
फड़फड़ाना
मजबूरी है।
संज़ीदगी
मात्र सोच में क्यों
जीने के तौर-तरीकों में
"मेरी मर्जी"
ऐसी क्यूँ
मग़रूरी है।
मौत को
तय करने दीजिए
फ़ासला
ज़िंदगी
जीने वालों के
नज़रिए से
पूरी या अधूरी है।
©yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com17tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-78215726074189594372020-03-07T16:16:00.000-08:002020-03-07T16:16:45.559-08:00जिजीविषा ....मन की उपज
स्त्रियों का हास्य बोध
और जिजीविषा
गिन नहीं पाएँगे आप
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
हारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
कारण है एक ही
उसने हर तरह की
चुनौतियां और मुश्किलें
हंसकर पार की है
वजह है..
प्रकृति ने उसे
असंख्य गुण
व अद्भुत सहनशीलता
के गुणों से
नवाजा है
सामाजिक
निशानदेही
स्त्रियों के बिना
अकल्पनीय है
धैर्य yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-29269605580489108382019-09-13T21:13:00.001-07:002019-09-14T01:16:56.687-07:00हिन्दी में हैं हम..
हिस्सा है हिन्दी
हमारे अस्तित्व का ...
ये वो पुल है जो...
ले जाती है सुखों तक
पहुंचाती है हमें
संतुष्टि के शिखरो पर
जोड़ती है..हमें
हमारी जड़ों से
बताती है पता..
ज्ञान का..... जिसे
संजोया गया है
करोड़ों लोगों द्वारा
वर्षों से...और
ले जाती है हमें..
एक सार्थक
जीवन की ओर
कुल मिलाकर
आप भी सहमत होंगे
हिन्दी में हैं हम
और हिन्दी हममें है
मन की उपज
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-706643124022585432019-06-24T22:14:00.001-07:002024-02-25T02:27:36.243-08:00बड़प्पन
बड़प्पन
मायके आयी रमा, माँ को हैरानी से देख रही थी। माँ बड़े ध्यान से
आज के अखबार के मुख पृष्ठ के पास दिन का खाना सजा रही थी। दाल, रोटी, सब्जी और रायता। फिर झट से फोटो खींच व्हाट्सप्प
करने लगीं।
"माँ ये खाना खाने से पहले फोटो लेने का क्या शौक हो गया
है आपको ?"
"अरे वो जतिन बेचारा, इतनी दूर रह हॉस्टल का खाना ही खा रहा है। कह रहा था की आप रोज लंच और डिनर के वक्त अपने yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-67381149587475160572019-05-29T20:11:00.000-07:002019-05-29T20:24:09.101-07:00ज़िंदगी के मायने और है
आज की चाहतें और है
कल की ख़्वाहिशें और हैं
जो जीते है ज़िंदगी के पल-पल को
उसके लिये ज़िंदगी के मायने और है
हसरतें कुछ और हैं
वक़्त की इल्तज़ा कुछ और है
हासिल कुछ हो न हो
उम्र का फलसफ़ा कुछ और है
कौन जी सका है...
ज़िन्दगी अपने मुताबिक
वक़्त की उंगली थामे
हर मोड़ की कहानी कुछ और है
ख़यालों के सफ़र में
हक़ीकत और ख़्वाब बुने जाते हैं
दिल चाहता कुछ और है
पर होता कुछ और है
यूं तो yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-27855312914631363972019-03-11T03:30:00.000-07:002019-03-11T03:30:03.408-07:00तुमसे मिलने के बाद.......अज्ञात
तुम्हे जाने तो नही देना चाहती थी ..
तुमसे मिलने के बाद
पर समय को किसने थामा है आज तक
हर कदम तुम्हारे साथ ही रखा था ,ज़मीं पर
बहुत दूर चलने के लिए
पर रस्ते भी बेवफा निकले
समेट ली , अपनी लम्बाई
फिर दूर तुम्हारी ही आखो से
देखने लगी खुबसूरत नज़ारे
और खोने लगी ना जाने कहाँ
तभी तुमने जगाया ख्वाब से
कहते हुए जी लो हर पल
याद करने के लिए जीवन भर
तुम्हारी बातो का yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-3364882914662584702019-01-30T15:48:00.000-08:002019-01-30T15:48:03.152-08:00शब्दों का खेत
'शब्दों के खेत' में
आओ खामोशियों को बोएँ
तितलियों के पंखो को
सपनो की जादुई छड़ी से
सहलाएं....
अंतर्मन की आंखो से
बीते हुए वक्त को सहेजें...
कल-कल करती नदियों से
उसकी सहजता का भेद पूछें....
लोरी की बोलों को बोएं.....
सपनो के सिराहने,
नींद की अठखेलियों से खेलें...
एक नया खेत जोतने की
तैयारी में जुट जाएं.....
आओ, शब्दों के खेत में
खामोशी को फिर से बोएं....
- साजिदा आपा की रचना से प्रेरित
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-77768380735046371162018-05-09T17:38:00.000-07:002018-05-09T17:38:56.002-07:00सरेआम भले ही हो....यशोदा
उसे पाने की
कोशिश का
चढ़ा है नशा..
है आ रही महक
गुलाब की
रात देखा था
इक ख़्वाब सा
किया था हमने
इज़हार प्यार का
कर रहा हूँ इन्तेज़ार
तेरे इकरार का
किया है इक वादा
वफ़ा का
पर....
पुरज़ोर कोशिश
कि, मेरी मोहब्बत
सरेआम भले ही हो
पर तमाम न हो
मन की उपज-यशोदा
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-57667188248091388732018-04-12T01:19:00.002-07:002018-04-12T01:19:59.915-07:00अहिल्या को नहीं भुगतना पड़ेगा.....मन की उपज
विडम्बना
यही है की
स्वतंत्र भारत में
नारी का
बाजारीकरण किया जा रहा है,
प्रसाधन की गुलामी,
कामुक समप्रेषण
और विज्ञापनों के जरिये
उसका..........
व्यावसायिक उपयोग
किया जा रहा है.
कभी अंग भंगिमाओं से,
कभी स्पर्श से,
कभी योवन से तो
कभी सहवास से
कितने भयंकर परिणाम
विकृतियों के रूप में
सामने आए हैं, yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-70011583075600539952018-03-17T17:25:00.000-07:002018-03-17T17:25:52.205-07:00फिर...आपकी देह के इर्द-गिर्द... मन की उपज
जब आप बीमार रहते हैं तो बना रहता है हुजूमतीमारदारों का और ये.. वो ही रहते हैं जिनकी बीमारी में...आपने चिकित्सा व्यवस्था करवाई थी पर भगवान न करे...आपकी मृत्यु हो गई तो...वे आपको आपके घर तक पहुंचा भी देंगे..और फिर.......आपकी देह के इर्द-गिर्द... रिश्तेदारों का जमावड़ा शुरु हो जाएगा...कुछ ये जानने की कोशिश में रहेंगे कि yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-44222143107118097682018-03-07T17:15:00.000-08:002018-03-07T17:15:14.936-08:00एक ख़त परमपिता परमेश्वर के नाम
हे परमपिता परमेश्वर
श्रद्धेय हृदय वंदन।
इस संसार की हम सभी महिलाएँ आपको धन्यवाद देना चाहती हैं कि आपने हमें अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति और सबसे खूबसूरत करिश्में के रूप में धरती पर भेजा है। आपने हमें वो तमाम गुणों से अलंकृत किया , जो संसार में किसी और के पास नहीं।
आपने हमें प्यार, ममता, मासूमियत, सच्चाई, हिम्मत, हौसला, बुद्धिमत्ता, कार्यकुशलता...जैसे वो गुण दिए जो महिलाओं को ख़ास बनाते हैं, परिवारyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com16tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-32117365584979889762018-02-14T23:23:00.002-08:002018-02-14T23:23:30.628-08:00ना होती स्त्री मैं तो
सीमित हूँ
बहुत.....मैं
शब्दों में....
अपने ही
लेकिन, हूँ
विस्तृत बहुत
अर्थों में..... मेरे
अपने ही...
ना होती स्त्री
मैं तो...कहो
कहाँ होता...अस्तित्व
तुम्हारा.........भी
मेरे होने से.... ही
तुम पुरुष हो....वरना
व्यर्थ है...
तुम्हारा...यह
व्यक्तित्व....
-मन की उपज
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-8147004013646564112018-01-29T03:04:00.000-08:002018-01-29T03:04:51.616-08:00हो रहे पात पीत
हो रहे
पात पीत
सिकुड़ी सी
रात रीत
ठिठुरन भी
गई बीत
गा रहे सब
बसंत गीत
भरी है
मादकता
तन-मन-उपवन मे.
समय होता
यहीं व्यतीत
बौराया मन
बौरा गया तन
और बौराई
टेसू-पलाश
गीत-गात में
भर गई प्रीत
-मन की उपज
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-6250714153840928322018-01-09T22:31:00.003-08:002018-01-10T00:08:30.824-08:00जलता रहता है अलाव एक
जाने के बाद
तुम्हारे
अक्सर
ख़्यालों में
तुमसे मिलकर
लौटने के बाद
हल्की-हल्की
आँच पर
खदबदाता रहता है
तुम्हारा एहसास
लिपट कर साँसों से
पिघलता रहता है
कतरा-कतरा।
बनाने लगती हूँ
कविता तुम्हारे लिए
अकेलेपन की.......
जलता रहता है
अलाव एक
बुझते शरारों के बीच
फिर उम्मीद जगती है
और एक मुलाकात की
फिर.....तुम्हारे लिए
तुमसे मिलूँ.....
एक और नई
कविता के लिए
-यशोदा
-मन की उपज
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-27824944802975213772018-01-03T23:25:00.002-08:002018-01-03T23:25:39.942-08:00आनन्द प्रेम का...
आनन्द
प्रेम का...
असम्भव है
शब्दों में
बता पाना
और ये भी कि
क्या है प्रेम का
कारण...
यह गूंगे का गुड़ है
देह, मन, आत्मा का
ऐसा आस्वाद है
जिसके विवेचन में
असमर्थ हो जाती
इंद्रियां भी...
अलसा जाती हैं....
आस्वाद प्रेम का
अनुभव तो करती हैं
पर उसी रूप में
नहीं कर पाती
व्यक्त
यही कारण है कि
आज भी प्रेम
अपरिभाषित है,
नव्यyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-78032824110936949712017-12-27T22:57:00.003-08:002017-12-27T22:59:42.995-08:00ना जाने कितने मौसम बदलेंगे.....
ना जाने कितने मौसम बदलेंगे
ना जाने
कितने लोगों से
कितनी
मुलाकातें बची है?
न जाने कितने दिन
कितनी रातें बची हैं?
ना जाने कितना रोना
कितना सहना बचा है?
कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
कितने फूल खिलेंगे?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बहलायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तू सोच इतना
जब जो होना है होyashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-34139402923923532262017-12-17T16:29:00.000-08:002017-12-17T16:29:05.439-08:00फिर अंकुरित हो जाती है
पत्ते झड़ते रहते हैं
शाखाएँ भी कभीटूट जाती हैपर वृक्ष...खड़ा रहता हैनिर्विकार..निरन्तरउस पर नई शाखाएँ आ जाती हैनवपल्लव भीदिखाई पड़ने लगती हैकुछ जिद्दी लताएँसाथ ही नही छोड़ती वृक्ष का..रहती है चिपकीसूखती है और फिरअंकुरित हो जाती है
-यशोदामन की उपज
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-49982209275899626172017-12-14T03:32:00.003-08:002017-12-14T03:32:50.569-08:00एक और शाम....
एक और शाम
उतर आयी आँखों में
भर गयी नम किरणें
खुला यादों का पिटारा...
भीग गयी पलकें
फैलकर उदासी
धुंधला गयी चाँद को
झोंका सर्द हवा का
लिपटकर तन से
छू गया अनछुआ मन
ठंडी हथेलियों को चूम
चाँदनी महक गयी
ओढ़ यादों की गरमाहट
लब मुस्कुराये
जैसे हो स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा
- यशोदामन की उपज
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-79940799550681448892017-12-07T03:13:00.000-08:002017-12-07T03:13:22.798-08:00बयां करेगी किस्से
ऐ कविता
एक तलब सी
बन गई हो
इस जिंदगी में तुम......
जो बिन तुम्हारे
अधूरी सी
हो चली है.......
हर सपनो में तुम
और
तुम में ही
हर सपना है मेरा.........
जानता हूँ
दिल में रखे
ये मोहब्बत के पन्ने
एक रोज
उड़ जाएंगे हवा में
काफूर बन के…....
फिर भी
कम नहीं होती
ये तलब
तेरे प्यार की......
सोचता हूँ
ये क्या कम है
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1989219551624430594.post-90189707494464956762017-12-06T18:20:00.000-08:002017-12-06T21:36:27.408-08:00कहाँ से आएगी माँ....
सोनोग्राफी क्लिनिक के अन्दर
एक महिला ने
थरथराते होठों से
एकान्त में..कहा
घर वाले मेरा ..
करवाना चाहते हैं
परीक्षण
जानना चाहते वे
लड़का है या फिर लड़की
अन्तरात्मा मेरी
धिक्कारती है मुझको
मैडम आप ही
कोई दीजिए सुझाव
कह दीजिए आप
अगर
आपने यह परीक्षण करवाया
तो प्रसव मैं नही करवा सकती..
हाँ,"मैडम ने कहा"
वैसे भी गलत भी
हो जाते हैं कई टेस्ट
सौ प्रतिशत
कोई नहीं बता सकता
yashoda Agrawalhttp://www.blogger.com/profile/05666708970692248682noreply@blogger.com5