कोई कवि नहीं था
रावण के राज्य में
भाषा थी सिर्फ़ लंकाई
जो रावण और
उसके क़रीबी दैत्य बोलते थे
राम !
तुम्हारे नहीं रहने के बाद भी
तुम हो सर्वत्र,
तो इसलिए भी
तुम साहित्य में हो
केवल भाषा में नहीं
वो भी
इसलिए ही कि तुम्हारे साथ कवि थे !
भाषा का अमर रस
कवि के पास ही होता है,
केवल दरबारी भाषा बोलने वाली
जनता के पास नहीं
राम !
तुम और तुम्हारे राज्य की
भाषा भी बची हुई है
वह तो केवल साहित्य है
जहाँ तुम हो,
वहीं तुम्हारी भाषा भी है!
साहित्य ही पहचानता है कि
राम क्या है और
रावण क्या नहीं है
राम!
मरे हुए को समझाने कहूँगा नहीं,..क्योंकि
मरा हुआ आदमी समझता भी कहाँ है,
उसकी तो भाषा भी नहीं होती !
एक कहावत है
''कौन पढ़ाये मूर्खों को कि
भाषा से साहित्य बनता है''
किन्तु ''साहित्य से ही
भाषा समृद्ध'' होती है,
और उन्हें तो कतई नहीं कि
जो भाषा, साहित्य, संस्कृति और
विचार के प्रति कहीं से भी गंभीर न हों
-मन की उपज