उनकी चालों का ज़िक्र आता है।
प्यार अब बाँटने की चीज़ नहीं,
शूल भालों का ज़िक्र आता है।
सूर मीरा कबीर मिलते नहीं,
बस रिसालों का ज़िक्र आता है।
लोग जब हक़ की बात करते हैं,
बंद तालों का ज़िक्र आता है।
आग जब दिल में उठने लगती है
तब मशालों का ज़िक्र आता है।
जल के मिट तो रहे हैं परवाने,
पर उजालों का ज़िक्र आता है।
देखकर हाल अब ज़माने का,
गुज़रे सालों का ज़िक्र आता है।
प्यार अब बाँटने की चीज़ नहीं,
शूल भालों का ज़िक्र आता है।
सूर मीरा कबीर मिलते नहीं,
बस रिसालों का ज़िक्र आता है।
लोग जब हक़ की बात करते हैं,
बंद तालों का ज़िक्र आता है।
आग जब दिल में उठने लगती है
तब मशालों का ज़िक्र आता है।
जल के मिट तो रहे हैं परवाने,
पर उजालों का ज़िक्र आता है।
देखकर हाल अब ज़माने का,
गुज़रे सालों का ज़िक्र आता है।
......शरद तैलंग
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