Tuesday, 11 October 2011

ओ बंजारे दिल आओ चलें अब घर अपने................ललित कुमार



ओ बंजारे दिल आओ चलें अब घर अपने
घर से दूरी है लगी दिखाने असर अपने
पीछे पड़ी रह जाएगी वो ख़ाक कहेगी
तय हमनें किस तरह किए सफ़र अपने
रहते ग़र वो साथ तो तारे भी क्या दूर थे
पा ही लेते, हमें पर छोड़ गये थे पर अपने
इश्के-साहिल है उसे मिटना तो ही होगा
उठते ही पल गिन लेती लहर लहर अपने
ये तन्हाई भी क्या-क्या खेल दिखाती है
ज़िन्दगी जा रही पर रुके हुए पहर अपने
याद है हम भी कभी खुशहाल हुआ करते थे
फिर ये कि उसने बुलाया मुझे शहर अपने
पूछा नहीं किसी ने जब था हाले-दिल कहना
अब कोई पूछे तो हिलते नहीं अधर अपने
----ललित कुमार

1 comment: