आइए श्री बीस बारह
आ रहे हैं आइए!
किंतु बारह बाट की
कोई तुला मत लाइए!!
जा रहे श्री बीस ग्यारह,
जा रहे हैं जाइए,
जो हुई हैं भूल
उनको पुन: मत दोहराइए।
आइए कुछ इस तरह
इस देश के जनतंत्र में
जन-मन पनपना
भव्यता का दिव्य सपना
और अपनापन
तनिक बाधित न हो,
संसद भवन के सौध में
जो रखा है
अति जतन से
वह कॉन्स्टीट्यूशन हमारा
सुधर तो जाए मगर
हत्यार्थ सन्धानित न हो।
नालियां जो
इस प्रणाली में बनी हैं,
रुंध गई हैं
ठोस कीचड़ से सनी हैं।
इस सदी ने इस बरस
कुछ शीश
ज्यादा ही धुना है,
वर्ष बारहवां बदलता
रूप घूरे का सुना है।
आइए श्री बीस बारह
आ रहे हैं आइए!
बारामासी खटन गया सी
खट जलवा दिखलाइए!!
--------अशोक चक्रधर
screwing satire...
ReplyDeleteashok ji ki baat hi kuch aur hai...un ki rachna ki taarif me bas itna hi kah sakti hun ke slaam hai un ki shaayri ko....
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