Friday, 3 February 2012

ओ वासंती पवन हमारे घर आना..............डॉ.कुंअर बेचैन

बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।

जडे़ हुए थे ताले सारे कमरों में
धूल-भरे थे आले सारे कमरों में ।

उलझन और तनावों के रेशों वाले
पूरे हुए थे जाले सारे कमरों में ।

बहुत दिनों के बाद सँकलें डोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना ।

एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों में
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में

लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
मोहक-मोहक प्यारे-प्यारे रंगों में

बहुत दिनों के बाद खुशबुएँ घोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना ।

पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में
गहरा सन्नाटा सा था अन्तर्मन में

लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
चिंतन की छत पर भावों के आँगन में

बहुत दिनों के बाद चिरइयाँ बोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।


-----  डॉ.कुंअर बेचैन

1 comment:

  1. ्बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

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