Friday, 2 March 2012

महक उठी थी केसर..........................फाल्गुनी

खिले थे गुलाबी, नीले,
हरे और जामुनी फूल
हर उस जगह
जहाँ छुआ था तुमने मुझे,
महक उठी थी केसर
जहाँ चूमा था तुमने मुझे,
बही थी मेरे भीतर नशीली बयार
जब मुस्कुराए थे तुम,
और भीगी थी मेरे मन की तमन्ना
जब उठकर चल दिए थे तुम,
मैं यादों के भँवर में उड़ रही हूँ
अकेली, किसी पीपल पत्ते की तरह,
तुम आ रहे हो ना
थामने आज ख्वाबों में,
मेरे दिल का उदास कोना
सोना चाहता है, और
मन कहीं खोना चाहता है
तुम्हारे लिए, तुम्हारे बिना।
---------फाल्गुनी

10 comments:

  1. महक उठी थी केसर
    जहाँ चूमा था तुमने मुझे,
    बही थी मेरे भीतर नशीली बयार
    जब मुस्कुराए थे तुम,

    बहुत सुन्दर भाव...
    शुक्रिया यशोदा जी...

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना..

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  3. यादों के भँवर में उड़ रही हूँ
    अकेली, किसी पीपल पत्ते की तरह,
    तुम आ रहे हो ना
    ... सुकोमल भावनाओं के उड़ते गुबार.. बहुत ही सुंदर लिखा दीदी।
    होली की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐🖍️🖍️

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  4. अत्यंत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

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  5. वियोग शृंगार का हृदय स्पर्शी सृजन, अप्रतिम सुंदर।
    होली पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌷

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  6. यादों के भँवर में उड़ रही हूँ
    अकेली, किसी पीपल पत्ते की तरह,
    तुम आ रहे हो ना
    अत्यंत भावपूर्ण एवं लाजवाब सृजन ।
    वाह!!!
    रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  7. महकी हुई रचना

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  8. खिले थे गुलाबी, नीले,
    हरे और जामुनी फूल
    हर उस जगह
    जहाँ छुआ था तुमने मुझे,
    महक उठी थी केसर
    जहाँ चूमा था तुमने मुझे,

    अति सुंदर हृदयस्पर्शी भाव दी,होली की हार्दिक शुभकामनायें आपको

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  9. बहुत बढ़िया
    रंगपर्व की हार्दिक शुभकामनायें

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