Tuesday, 20 March 2012

मैं तो चाँद हूँ तन्हा ही रहा..........हेमज्योत्सना 'दीप'

चेहरे बदलने का हुनर मुझमें नहीं,
दर्द दिल में हो तो हँसने का हुनर मुझमें नहीं,


मैं तो आईना हूँ तुझसे, तुझ जैसी ही बात करूँ,
टूट कर सँवरने का हुनर मुझमें नहीं।

चलते-चलते थम जाने का हुनर मुझमें नहीं,
एक बार मिल कर छोड़ जाने का हुनर मुझमें नहीं,

मैं तो दरिया हूँ, बहता ही रहा,
तूफान से डर जाने का हुनर मुझमें नहीं।

सरहदों में बँट जाने का हुनर मुझमें नहीं,
रोशनी में ना दिख पाने का हुनर मुझमें नहीं,

मैं तो हवा हूँ महकती ही रही,
आशियाने में रह पाने का हुनर मुझमें नहीं।

दर्द सुनकर और सताने का हुनर मुझमें नहीं,
धर्म के नाम पर खून बहाने का हुनर मुझमें नहीं,

मैं तो इन्सान हूँ, इन्सान ही रहूँ,
सब कुछ भूल जाने का हुनर मुझमें नहीं।

अपने दम पे जगमगाने का हुनर मुझमें नहीं,
मैं तो रात को ही दिखूँगा,
दिन में दिख पाने का हुनर मुझमें नहीं,

मैं तो चाँद हूँ तन्हा ही रहा,
तारों की तरह साथ रह पाने का हुनर मुझमें नहीं।

मैं तो जिन्दगी हूँ चलती ही रहूँ,
बेवक्त साथ छोड़ जाने का हुनर मुझमें नहीं।

मैं एक एहसास हूँ, मन में ही बसूँ,
भगवान की तरह पत्थर में रह पाने का हुनर मुझमें नहीं।

-----------हेमज्योत्सना 'दीप'

1 comment:





  1. यशोदा जी
    नमस्ते !

    शायद यहां पहली बार आया हूं …
    अलग अलग रचनाकारों की कई रचनाएं पढ़ीं … सबको मेरी शुभकामनाएं !

    मैं तो हवा हूँ महकती ही रही,
    आशियाने में रह पाने का हुनर मुझमें नहीं

    वाह !
    ख़ूबसूरत नाम वाली हेमज्योत्सना 'दीप' जी
    को इस सुंदर रचना के लिए बधाई पहुंचादें … और श्रेष्ठ लिखने की शुभकामना के साथ !


    ~*~नवरात्रि और नव संवत्सर की बधाइयां शुभकामनाएं !~*~
    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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