चुनते हैं हम
सुख या फिर
ख़ुशी..
रह कर भी
शिविर में ..
प्रताड़नाओं के
हम मन के
मौसम को...
बासन्ती बना सकते हैं
कोई इन्सान..
कोई वस्तु
या फिर
प्रक्रिया हो
कोई भी....
इतनी बलशाली नहीं
कि हमारे मन पर
कब्ज़ा कर सके
वो भी बगैर हमारी
मर्जी....और हम
मन से..करते हैं
कोशिश...और
तलाश लेतें हैं
खुशियाँ...
-मन की उपज
#हिन्दी दिवस
सुख या फिर
ख़ुशी..
रह कर भी
शिविर में ..
प्रताड़नाओं के
हम मन के
मौसम को...
बासन्ती बना सकते हैं
कोई इन्सान..
कोई वस्तु
या फिर
प्रक्रिया हो
कोई भी....
इतनी बलशाली नहीं
कि हमारे मन पर
कब्ज़ा कर सके
वो भी बगैर हमारी
मर्जी....और हम
मन से..करते हैं
कोशिश...और
तलाश लेतें हैं
खुशियाँ...
-मन की उपज
#हिन्दी दिवस
वाह्ह्ह...दी बहुत सुंदर👌👌
ReplyDeleteक्या खूब लिखा आपने।
मन पर किसी का ज़ोर नहीं
मन को बाँध सके वो डोर नहीं
मेरी शुभकामनाएँ दी सदैव आपकी लेखनी के लिए।
खूब लिखिए।
सादर।
सुन्दर!
ReplyDeleteसहज हो मन और गांठ मन की, तब मन अति बलशाली होता है। बिन प्रभावित हुए, ये खुद अपना प्रभाव छोड़ने मे सक्षम होते है।
ReplyDelete👌👌👌👌
सुप्रभात ,
ReplyDeleteसत्यवचन ,
बांध सके जो मन को मेरे,
ऐसी कोई डोर कहाँ,
तन में बसा है मन फिर भी,
इसका कोई छोर कहाँ,
बहोत ही सूंदर रचना,
हर नीराशा में आशा की किरण ढूंढ़ता है मन
कभी हम मन को कभी हमें समझाता है मन ,
असीम शक्ति है इच्छाशक्ति,
हर परिस्थिती को अपनाता है मन,
वाह मन पर चिंतन परक व्याख्यात्म सृजन ।
ReplyDeleteसुंदर ।
वाह बहुत सुंदर रचना
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