Wednesday, 30 January 2019

शब्दों का खेत


'शब्दों के खेत' में
आओ खामोशियों को बोएँ
तितलियों के पंखो को
सपनो की जादुई छड़ी से
सहलाएं....

अंतर्मन की आंखो से

बीते हुए वक्त को सहेजें...
कल-कल करती नदियों से
उसकी सहजता का भेद पूछें....
लोरी की बोलों को बोएं.....

सपनो के सिराहने,

नींद की अठखेलियों से खेलें...
एक नया खेत जोतने की
तैयारी में जुट जाएं.....
आओ, शब्दों के खेत में
खामोशी को फिर से बोएं....
- साजिदा आपा की रचना से प्रेरित