जब पहला आखर सीखा मैंने
लिखा बड़ी ही उत्सुकता से
हाथ पकड़ लिखना सिखलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
अँगुली पकड़ चलना सिखलाया
चाल चलन का भेद बताया
संस्कारों का दीप जलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
जब मैं रोती तो तू भी रो जाती
साथ में मेरे हँसती और हँसाती
मुझे दुनिया का पाठ सिखाती
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
खुद भूखा रह मुझे खिलाया
रात भर जगकर मुझे सुलाया
हालातों से लड़ना तूने सिखाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।
© दीप्ति शर्मा
ओ मेरी माँ वो तू ही है………माँ को नमन
ReplyDeletemaa to bas aisi hi hoti hai ...nice :)
ReplyDeleteजय जिनेन्द्र
Deleteशुक्रिया मोनिका
सार्थक चित्रण किया है आपने माँ का..बधाई !!
ReplyDeleteशुक्रिया बृजेन्द्र भाई
Deleteओ माँ वो तू ही तो है...
ReplyDeleteएक आँसू भी मेरा जिस से टकराता है पहले,
वो साया है आँचल का तेरे.....हर मुसीबत जो मेरी 'हर' ले !
पहुँचे मुझ तक कोई बला कैसे,
तू बन के खुदा.., रोक लेती है उसे!
ओ माँ वो तू ही तो है...
शुक्रिया अनीता जी
Deleteअब आप अपने लोगों के बीच में आ गई हैं
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
मुझसे गलती हो गई भाई
Deleteइस लिंक को मुझे दीप्ति जी के ब्लाग से लेना था
दीप्ति जी से कहूँगी इस ब्लाग के विजिट कर ले
यशोदा
सुंदर भाव भरी रचना...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
शुक्रिया हबीब साहब
Deleteबहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआपने मुझे प्रसन्न कर दिया चौबे जी
सादर
माँ के प्रति आपके ये अनुरागी भाव सचमुच आदरणीय हैं
ReplyDeleteभावमय प्रस्तुति
शुक्रिया अंजनी भाई
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