Wednesday, 5 October 2011

सुकूं बांकपन को तरसेगा...............................??????????

एक निवेदनः
कोई सामान घर में एक कागज में पेक करके लाया गया वह कागज मेरी नजर में आया, 
उसी कागज में ये ग़ज़ल छपी हुई थी, पर श़ाय़र का नाम नहीं था.
आप सभी से ग़ुज़ारिश है यदि किसी को इस ग़ज़ल के श़ाय़र का नाम मालूम हो तो
मुझे बताएं ताकि मैं श़ाय़र का नाम लिख सकूं................शुक्रिया

जबान सुकूं को, सुकूं बांकपन को तरसेगा,
सुकूंकदा मेरी तर्ज़-ऐ-सुकूं को तरसेगा.

नए प्याले सही तेरे दौर में साकी,
ये दौर मेरी शराब-ऐ-कोहन को तरसेगा.

मुझे तो खैर वतन छोड़ के अमन ना मिली
वतन भी मुझ से गरीब-उल-वतन को तरसेगा

उन्ही के दम से फरोज़ां पैं मिलातों के च़राग
ज़माना सोहबत-ए-अरबाव-ए फन को तरसेगा

बदल सको तो बदल दो ये बागबां वरना
ये बाग साया-ए-सर्द-ओ-समन को तरसेगा

हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन
ज़मीं पानी को सूरज़ किरण को तरसेगा

4 comments:

  1. बहुत अच्छा लगा ये जानकर कि आप इस तरह की रचनाओं का इतना शौक रखती हैं।

    बहुत ही अच्छी गजल है।

    सादर

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  2. गज़ब.....पता नहीं कहाँ-कहाँ,कब-कब,क्या-क्या कुछ लिखा जा चुका है...कि जिस पर कुछ भी कहना नाकाफी लगता है....उसपर तो कुछ नहीं कह पाउँगा...मगर उससे उत्प्रेरित होकर अभी-अभी जो मैंने गड़ा है....वो आप तक पहुंचा रहा हूँ....
    अगर तू हर इक बात पे बरपेगा
    तो फिर इक यार को भी तरसेगा !
    कई उम्र का प्यासा हूँ मैं यारब
    क्या ये अब्र कभी मुझपे बरसेगा !
    इतना गुमाँ न कर अपनी ताकत पे
    इक दिन तू चार कांधों को तरसेगा !
    सबके लिए लड़ना हिम्मत की बात है
    उसके लिए वतन का हर आंसू बरसेगा !
    ये बता,कब रुखसत होगा तू यहाँ से
    और ज्यादा देर की,इज्ज़त को तरसेगा !
    वतन से गद्दारी करने वाले ये जान ले
    तेरा बच्चा तेरे कर्मों का फल भुगतेगा !
    है हिम्मत तो लड़ इस अव्यवस्था से
    वरना तेरा खूँ व्यवस्था के लिए तरसेगा !

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  3. बहुत खूबसूरत गजल .... शायर का नाम नहीं पता तो क्या ... गजल तो अच्छी है :)

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