Saturday, 1 October 2011

सड़क.........................जे.के.डागर

सब मुझको कहते सड़कें है
ये भी कहते बड़ी कड़क है
पिघल-पिघल कर बनती हूँ।
कड़क तुम्हें ही लगती हूँ।
हृदय मेरा कई बार है पिघला
रख-रख पाँव चोर जब निकला
बारात गुजरती, बाजे बजते
हँसती हूँ मैं देख उन्हें ही संग
मैं भी नाचूँ हिय लिए उमंग
मातृभूमि के दीवाने चलते
कदम बढ़ाते कमर को कसते
खट्टे दाँत करेगें दुश्मन के
यही उद्गार मेरे भी मनके
जयहिंद जयहिंद कहते जाएं
रण क्षेत्र से जीत कर आएं
जब जयचंद चल गोरी से बोला
मै जैसी भी थी खूँ कितना खौला
चाहा उसके कदम बाँध लूँ
उठकर कोई तीर साध लूँ
चाह कर भी कुछ कर न सकी
बेबस शर्म से मर न सकी
पंजाब केसरी ने आवाज उठाई
फिरंगी ने तब लाठी बरसाई
भगत सिंह, चन्द्रा, राजगुरु
जिस दिन फाँसी को हुए शुरू
था रोष बड़ा मैं मिट न सकी
पैरों के तले सिमट न सकी
धरती पर चिपकी धूम रह गई
शहीदों के चरण चूम रह गई
आज भी मोर्चे,रैली आते
तोड़-फोड़ करें जाम लगाते
न देश प्रेम बचा किसी मन में
आसूँ लिए बैठी दामन में
वक्त वह रहा, न ये ही रहेगा
जयहिंद जयहिंद कोई फिर से कहेगा
यही सोच दिल धड़क रहा है,
आस लिए नाम सड़क रहा है।
 
-------जे.के.डागर

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