Saturday, 1 October 2011

संसाधनों का सदुपयोग.............................जे.के.डागर

भूखा है कोई तो प्यासा कोई,
पंखे की हवा बिन रूआंसा कोई।
नंगा है कोई तो अंधेरे में कोई,
तरसता है,होता बसेरे में कोई।
देखो जो होटल या शादी में जाकर,
सड़ाते है खाना कितना गिराकर।
कितने ही भूखों की भूख मिटाता,
गिरा निवाला जो उदर तक जाता।
कितना पानी नलों से बहता है,
कोई पी ले मुझे रो-रो के कहता है।
इन नलों की तकदीर ही ऐसी बताते,
बहते रहना है नालियों की प्यास बुझाते।
कितने ही अकेले में चलते हैं,
इंसा के विरह में घंटों जलते हैं।
जो कोई इन पंखों को बंद कर देता,
बचा के विद्युत से घर भर लेता।
कितने ही मकाँ भी बंद रहते हैं,
गृह-प्रवेश की विरह को सहते हैं।
जो व्यर्थ जाते इन संसाधनों को बचाते,
तो कमी है कमी है, न हम चिल्लाते।
-------जे.के.डागर

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