Thursday, 17 November 2011

तेरी महफिल................................आलोक तिवारी

तेरी महफिल में मातम कम न होंगे ।
न होंगे हम क्या तो क्या ये ग़म न होंगे ।।

वो मरक़द तक हमारे क्यूं न आए ।
शिकस्ता पा सही बेदम न होंगे ।।

मेरी बरबादियों पे मेरे अपने ।
बहुत ख़ुश होंगे चश्मे नम न होंगे ।।

न छाऐंगी घटाऐं आसमाँ पर ।
तेरे गेसू अगर बरहम न होंगे ।।

सफर मंज़िल का हो पुरलुत्फ क्यूं कर ।
अगर राहों में पेच-ओ-ख़म न होंगे ।।

उठेंगी उंगलियाँ हक़ गोई पर भी ।
मेरे ऐ “शौक़” चर्चे कम न होंगे 
----आलोक तिवारी

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