Sunday, 27 November 2011

मैं यशोदा की वो बेटी.........आभा बोधिसत्व

मैं यशोदा की वो बेटी
जिसे ना नन्द बाबा ने बचाया ना वासुदेव ने
दोनों पिता थे और दोनों ने मिलकर मारा मुझे
ये तो अच्छी बात नहीं

सोती रही यशोदा माता
उसे तो यह भी नहीं पता
उसने जना था बेटी या बेटा !

बेटे की रक्षा के लिए मारी गयी बेटी
बेटा जुग जुग जिए
बेटा राज करे
कह -कह कर मारी गयी बेटी

कंस मामा ने तो बाद में मारा
उससे पहले पिता ने कंस मामा के हाथो में सौप कर
कंस मामा ने तो पत्थर पर पटका था केवल !

बेटी हू जानकार
गिर्द्गिदायी माँ देवकी
मरी मैं
बचा तुम्हारा बेटा
मैं मरी और मरती रही तब से अब तक
तब मरी कृष्ण के लिए
अब मरती हू किसी
मोहन,मुन्ना,दीपक के लिए
इन्ही कुल दीपक केलिए
बुझती रही मैं बार बार
ताकि कुल रहे उजियार
जिए जागे गाती रही मैं
तब भी
मरती रही मैं........
क्यूंकि मैं बेटी थी तुम्हारी
मुझे तो मरना ही था
तुम ना मारते पिता तो कोई दुर्योधन मारता मुझे
सभा के बीच साड़ी खीच कर
मुझे तो मरना ही था !!!!!!


प्रस्तुत कर्ताः सिद्धार्थ सिन्हा

5 comments:

  1. यह कविता तो आभा बोधिसत्व की है। आप बार-बार इसे अपने नाम से क्यों छाप रहे हैं। आप का क्या करना होगा।

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  2. इस रचना ने हिला दिया , कभी नहीं सोंचा इस बच्ची के बारे में , इसके कष्टों के बारे में समाज और कवि मौन क्यों रहे हैं ??
    सादर

    बाप के चेहरे को देखो
    सींग दो दिखते वहाँ !
    कौन पुत्री जन्म लेगी
    कंस के ,प्रासाद में !
    जन्म से पहले ही जननी,मारती मासूम को
    पूतना अब माँ बनीं हैं,फिर भी हम इंसान हैं !

    भ्रूण हत्या से घिनौना ,
    पाप क्या कर पाओगे !
    नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
    ऐश क्या ले पाओगे !
    जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
    एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !

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