Wednesday, 11 January 2012

**ताले **...............मनोज गुप्ता

प्यार किया है मैंने,
उन लोंगो से ,जिनके जीवन में
बाहर निकलने के रास्ते में ,
कहीं न कहीं पड़े है छोटे बड़े ताले !

पास रह के भी नहीं खुलते ,
अपनाने पड़ते हैं टेढ़े मेढ़े रास्ते !
पाप बताते , नरक रचते हैं
ये मन के बेवजह ताले !

सोने चांदी और लोहे ,
के ताले जिनमें बंद हैं ,
खुशियों की खिलखिलाहट
और रौशनी के झरने !

वह अनुभूति की दिव्यता ,
जिसे सर झुका के
हम मान लेते है
स्वीकारोक्ति से भर जाते हैं !

तालों के खुलने से ,
खुल जाती है नई दुनियां ,
सूरज के सामने आ जाते हैं
देखते हैं नई चीजें ,पुराने सरोकारों में !

अंकुरण से फल फूल तक ,
वसंत से पतझड़ तक
समझ में आता है जीवन ,
बहती हुई जीवन सरिता !

पल पल , हर पल
बदलता है जीवन जहाँ ॥
हमने क्यों लगा रखें हैं ,
अनगिनत ताले वहाँ ॥
----मनोज गुप्ता

No comments:

Post a Comment