Friday, 13 January 2012

चाहा था उन्हें .........अपना बनाना .................दीप्ति शर्मा

कसूर इतना था कि  चाहा था उन्हें

दिल में बसाया था उन्हें कि

मुश्किल में साथ निभायेगें

ऐसा साथी माना था उन्हें |

राहों में मेरे साथ चले जो

दुनिया से जुदा जाना था उन्हें

बिताती हर लम्हा उनके साथ

यूँ करीब पाना चाहा था उन्हें

किस तरह इन आँखों ने

दिल कि सुन सदा के लिए

उस खुदा से माँगा था उन्हें

इसी तरह मैंने खामोश रह

अपना बनाना चाहा था उन्हें |



-  दीप्ति शर्मा

3 comments:

  1. एक सच्ची पुकार काफ़ी है
    हर घड़ी क्या खुदा खुदा करना

    जब भी चाहत जगे समंदर की
    एक नदी की तरह बहा करना
    ...
    आप ही अपने काम आयेंगे
    सीखिए ख़ुद से मशवरा करना ...!!

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  2. लाख हो दुश्वार जीना फिर भी जीना चाहिए
    आदमी में अज़्मो-हिम्मत और भरोसा चाहिए

    हौसला टूटा हुआ और अश्क आँखों में भरे
    ज़िन्दगी को इस तरह हरगिज़ न जीना चाहिए...!!!

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