आज मैं अपनी हर बात पे अड़ूँगा,
महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,
जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,
शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,
बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,
दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,
जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,
साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,
थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,
अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा..................
----- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक' महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,
जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,
शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,
बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,
दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,
जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,
साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,
थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,
अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा..................