Wednesday, 15 February 2012

महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा.....................दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक' .

आज मैं अपनी हर बात पे अड़ूँगा,
महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,

जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,

शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,

बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,

दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,

जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,

साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,

थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,

अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा..................
----- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक'

Monday, 13 February 2012

कोई बदलाव की सूरत नहीं थी ..............................सचिन अग्रवाल "तन्हा "


कोई बदलाव की सूरत नहीं थी
बुतों के पास भी फुर्सत नहीं थी ......

अब उनका हक़ है सारे आसमां पर

कभी जिनके सरों पर छत नहीं थी .............

वफ़ा ,चाहत, मुरव्वत सब थे मुझमे
बस इतनी बात थी दौलत नहीं थी ........

फ़क़त प्याले थे जितने क़ीमती थे

शराबों की कोई क़ीमत नहीं थी ..............

मैं अब तक खुद से बेशक़ ख़फ़ा हूँ

मुझे तुमसे कभी नफरत नहीं थी .......

गए हैं पार हम भी आसमां के

वंहा लेकिन कोई जन्नत नहीं थी .........

वंहा झुकना पड़ा फिर आसमां को

ज़मीं को उठने की आदत नहीं थी .............

घरों में जीनतें बिखरी पड़ी हैं

मकानों में कोई औरत नहीं थी ...........

-------सचिन अग्रवाल "तन्हा "

Tuesday, 7 February 2012

मील के पत्थर...............रचनाकार...नामालूम(कृपया बताएं)

ना तो मैं हताश हूँ, ना ही मैं निराश हूँ|
पर अपनी कमरफ्तारी पर, थोड़ा सा उदास हूँ||

कुछ कमी है रौशनी की अभी, रास्ते भी कुछ धुंधले से हैं|

कभी दूर हूँ मैं रास्ते से, तो कभी रास्ते के पास हूँ ||

कर रहा है प्रश्न निरंतर, ये विचारों का अस्पष्ट प्रवाह|

किसी की तलाश में हूँ मैं, या खुद किसी की तलाश हूँ ||

गतिमान है प्रबल संघर्ष, कामनाओं के ज्वार-भाटे से|
इच्छाओं पर अंकुश है मेरा, या कामनाओं का दास हूँ||

चेहरा तो एक ही है मेरा, इन्सान बहुत से हैं अंदर|
कभी कृष्ण की मुरली हूँ, कभी कंस का अट्टहास हूँ||

यूँ तो आम आदमी हूँ, इक आम जिन्दगी जीने वाला|
पर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिये मैं खास हूँ||

माना कि कदम धीमे हैं, पर सफर अभी जारी है|
इसमें कोई आश्चर्य नहीं, कि मील के पत्थर तलाश लूँ||
रचनाकार...नामालूम(कृपया बताएं)

Friday, 3 February 2012

हुआ सवेरा .................................निदा फ़ाज़ली

 हुआ सवेरा
ज़मीन पर फिर अदब
से आकाश
अपने सर को झुका रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
नदी में स्नान करने सूरज
सुनारी मलमल की
पगड़ी बाँधे
सड़क किनारे
खड़ा हुआ मुस्कुरा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
हवाएँ सर-सब्ज़ डालियों में
दुआओं के गीत गा रही हैं
महकते फूलों की लोरियाँ
सोते रास्तों को जगा रही
घनेरा पीपल,
गली के कोने से हाथ अपने
हिला रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
फ़रिश्ते निकले रोशनी के
हर एक रस्ता चमक रहा है
ये वक़्त वो है
ज़मीं का हर ज़र्रा
माँ के दिल सा धड़क रहा है
पुरानी इक छत पे वक़्त बैठा
कबूतरों को उड़ा रहा है
कि बच्चे स्कूल जा रहे हैं
बच्चे स्कूल जा रहे हैं.....

रचनाकार: निदा फ़ाज़ली

प्रस्तुतिकर्ताः एच. आर.देशमुख

ओ वासंती पवन हमारे घर आना..............डॉ.कुंअर बेचैन

बहुत दिनों के बाद खिड़कियाँ खोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।

जडे़ हुए थे ताले सारे कमरों में
धूल-भरे थे आले सारे कमरों में ।

उलझन और तनावों के रेशों वाले
पूरे हुए थे जाले सारे कमरों में ।

बहुत दिनों के बाद सँकलें डोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना ।

एक थकन-सी थी नव भाव-तरंगों में
मौन उदासी थी वाचाल उमंगों में

लेकिन आज समर्पण की भाषा वाले
मोहक-मोहक प्यारे-प्यारे रंगों में

बहुत दिनों के बाद खुशबुएँ घोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना ।

पतझर ही पतझर था मन के मधुवन में
गहरा सन्नाटा सा था अन्तर्मन में

लेकिन अब गीतों की स्वच्छ मुंडेरी पर
चिंतन की छत पर भावों के आँगन में

बहुत दिनों के बाद चिरइयाँ बोली हैं
ओ वासंती पवन हमारे घर आना।


-----  डॉ.कुंअर बेचैन