Wednesday, 15 February 2012

महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा.....................दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक' .

आज मैं अपनी हर बात पे अड़ूँगा,
महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,

जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,

शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,

बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,

दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,

जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,

साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,

थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,

अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा..................
----- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक'

7 comments:

  1. THIS TYPE LINE SHOULD BE CONTINUE..........

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    1. इस सार्थक पोस्ट बधाई स्वीकार करें.

      कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें, अपनी राय दें.

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