आज मैं अपनी हर बात पे अड़ूँगा,
महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,
जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,
शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,
बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,
दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,
जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,
साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,
थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,
अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा..................
----- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक' महफिल में तेरी तुझसे ही लड़ूँगा,
जमाने गुजारे हैं मैने बन्दगी में तेरी,
शान में तेरी न अब कशीदे पढ़ूँगा,
बेदाग समझता है तेरे हुस्न को जमाना,
दोष मेरे सारे अब तेरे सर ही मढ़ूँगा,
जमीं के सफर में ठोकर जो दी है तूने,
साथ मैं तेरे अब न चाँद पे चढ़ूँगा,
थी मेरी तक़दीर पे तेरी ही हुकूमत,
अब आज तेरी किस्मत मैं ही गढ़ूँगा..................
WAAHH... BAHUT BADHIA...
ReplyDeletenice line(ayuraved.blogspot.com)
ReplyDeleteTHIS TYPE LINE SHOULD BE CONTINUE..........
ReplyDeleteइस सार्थक पोस्ट बधाई स्वीकार करें.
Deleteकृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen की नवीनतम पोस्ट पर भी पधारें, अपनी राय दें.
bahut hi sundar rachna
ReplyDeletethnx to everybody......
ReplyDeleteachhi gazal..
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