बीत गई
फीकी दीपावली
उत्साहविहीन
सुविधा विहीन
यंत्रवत जीवन जिया
एक मशीन की तरह
सुबह से शाम तक
रात में भी सोने के पहले
एक चिंतन कि
कल की कल-कल
मन में असंतोष
खुशियाँ सारी समाप्त,
मास्क पहनने
और हाथ धोने में
बची खुची कसर
चढ़ गई बनकर भेंट
इस कहर भरी
विदेशी विषाणुओं रचित
महामारी कोरोना की भेट
घर पर रहकर मानव
महज निसहाय 'औ'
किस्से -कहानी तक
रह गया सीमित
यह महोत्सव दीपावली का
रस्म अदाई हो गई है..
-यशोदा
तस्वीर क्या बोले समूह मे स्वरचित