स्त्रियों का हास्य बोध
और जिजीविषा
गिन नहीं पाएँगे आप
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
हारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
कारण है एक ही
उसने हर तरह की
चुनौतियां और मुश्किलें
हंसकर पार की है
वजह है..
प्रकृति ने उसे
असंख्य गुण
व अद्भुत सहनशीलता
के गुणों से
नवाजा है
सामाजिक
निशानदेही
स्त्रियों के बिना
अकल्पनीय है
धैर्य का पल्लवन है वो
स्नेह और प्यार का
अतुल कोश है उसके पास
कितना भी लिखूँ
स्त्रियों को
क़लम के दायरे से
उफ़नकर
बह ही जाती हैं।
-मन की उपज