ना जाने कितने मौसम बदलेंगे
ना जाने
कितने लोगों से
कितनी
मुलाकातें बची है?
न जाने कितने दिन
कितनी रातें बची हैं?
ना जाने कितना रोना
कितना सहना बचा है?
कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
कितने फूल खिलेंगे?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बहलायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तू सोच इतना
जब जो होना है हो
जाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा
तू तो हँसते जा गाते जा
निरंतर
जो भी मिले
उससे गले लग कर
मिल निरंतर...!!
-यशोदा
मन की उपज