तुम देना साथ मेरा

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Thursday, 12 April 2018

अहिल्या को नहीं भुगतना पड़ेगा.....मन की उपज


विडम्बना 
यही है की 
स्वतंत्र भारत में 
नारी का 
बाजारीकरण किया जा रहा है,

प्रसाधन की गुलामी, 
कामुक समप्रेषण 
और विज्ञापनों के जरिये 
उसका.......... 
व्यावसायिक उपयोग 
किया जा रहा है. 

कभी अंग भंगिमाओं से, 
कभी स्पर्श से, 
कभी योवन से तो 
कभी सहवास से 
कितने भयंकर परिणाम 
विकृतियों के रूप में 
सामने आए हैं, 

यही नही 
अनाचार के बाद 
जिन्दा जला देने 
जैसी निर्ममता से 
किसी की रूह 
तक नहीं कांपती 

क्यों....क्यों.. 
आज भी 
पुरुषों के लिये 
खुले दरवाजे 

और....और.. 
स्त्रियों के लिये
उफ....... 
कोई रोशनदान तक नहीं?

मैं कहती हूँ.... 
स्त्री नारी होती नहीं 
बनाई जाती है. 

हम सबको 
अब यह संकल्प लेना होगा 
कि अब और नहीं..
कतई नहीं, 
अब किसी इन्द्र के 
पाप का दण्ड 
अब किसी भी 
अहिल्या को 
नहीं भुगतना पड़ेगा

मन की उपज
-यशोदा
डायरी से....
28-9-14