तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Saturday, 7 March 2020

जिजीविषा ....मन की उपज


स्त्रियों का हास्य बोध 
और जिजीविषा
गिन नहीं पाएँगे आप
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
हारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
कारण है एक ही
उसने हर तरह की
चुनौतियां और मुश्किलें
हंसकर पार की है
वजह है..
प्रकृति ने उसे 
असंख्य गुण
व अद्भुत सहनशीलता
के गुणों से 
नवाजा है
सामाजिक
निशानदेही 
स्त्रियों के बिना
अकल्पनीय है
धैर्य का पल्लवन है वो
स्नेह और प्यार का
अतुल कोश है उसके पास
कितना भी लिखूँ 
स्त्रियों को
क़लम के दायरे से
उफ़नकर
बह ही जाती हैं।
-मन की उपज

16 comments:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    होलीकोत्सव के साथ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।

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  2. बहुत सुंदर सृजन दी।
    स्त्रियों के संदर्भ में लिखी हर कविता अधूरी ही लगती है।

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  3. कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
    हारी नहीं फिर भी
    रहती है हरदम जूझती
    कभी हंसकर..तो
    कभी खामोशी से
    या फिर करके विद्रोह..
    कारण है एक ही
    उसने हर तरह की
    चुनौतियां और मुश्किलें
    हंसकर पार की है
    वजह है..
    प्रकृति ने उसे
    असंख्य गुण
    व अद्भुत सहनशीलता
    के गुणों से
    नवाजा है.... बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी
    सादर

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  4. लिखती चलें। शुभकामनाएं।

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  5. बहुत खूब
    कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
    हारी नहीं फिर भी
    रहती है हरदम जूझती
    कभी हंसकर..तो
    कभी खामोशी से
    या फिर करके विद्रोह..

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  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌

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  7. सराहनीय प्रयास मंगल कामनाएं

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  8. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )

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    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'





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  9. कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
    हारी नहीं फिर भी
    रहती है हरदम जूझती
    कभी हंसकर..तो
    कभी खामोशी से
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर ...लाजवाब सृजन।

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  10. कितना भी लिखूँ
    स्त्रियों को
    क़लम के दायरे से
    उफ़नकर
    बह ही जाती हैं।
    बिल्कुल सही और सुंदर प्रस्तुति, यशोदा दी।

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  11. बहुत सुंदर सृजन
    सादर

    पढ़ें- कोरोना

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  12. स्त्रियों का हास्य बोध
    और जिजीविषा



    आह। .

    यही बात मैं अपनी माँ के लिए कहती हूँ कि काश आपकी ये दो आदतें मुझमे आ जाती तो जीवन कितना सरल दीखता मुझे भी

    बहुत सुंदर सृजन
    सादर

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  13. बहुत अच्छी कविता यशोदा, बहुत समय बाद आई हूँ अब आती रहूँगी।

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  14. बहुत ही सुंदर रचना मैम।

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  15. वाह , यही जिजीविषा तो नारी को सबसे अलग करती है ।उसका हौसला कोई नहीं तोड़ पाता ।हँस कर , सह कर सब निभा लेती है ।

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