स्त्रियों का हास्य बोध
और जिजीविषा
गिन नहीं पाएँगे आप
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
हारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
कारण है एक ही
उसने हर तरह की
चुनौतियां और मुश्किलें
हंसकर पार की है
वजह है..
प्रकृति ने उसे
असंख्य गुण
व अद्भुत सहनशीलता
के गुणों से
नवाजा है
सामाजिक
निशानदेही
स्त्रियों के बिना
अकल्पनीय है
धैर्य का पल्लवन है वो
स्नेह और प्यार का
अतुल कोश है उसके पास
कितना भी लिखूँ
स्त्रियों को
क़लम के दायरे से
उफ़नकर
बह ही जाती हैं।
-मन की उपज
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहोलीकोत्सव के साथ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
बहुत सुंदर सृजन दी।
ReplyDeleteस्त्रियों के संदर्भ में लिखी हर कविता अधूरी ही लगती है।
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
ReplyDeleteहारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
कारण है एक ही
उसने हर तरह की
चुनौतियां और मुश्किलें
हंसकर पार की है
वजह है..
प्रकृति ने उसे
असंख्य गुण
व अद्भुत सहनशीलता
के गुणों से
नवाजा है.... बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया दीदी
सादर
लिखती चलें। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteकितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
हारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
वाह! सुंदर!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteसराहनीय प्रयास मंगल कामनाएं
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )
ReplyDelete12 मार्च २०२० को साप्ताहिक अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
ReplyDeleteहारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर ...लाजवाब सृजन।
कितना भी लिखूँ
ReplyDeleteस्त्रियों को
क़लम के दायरे से
उफ़नकर
बह ही जाती हैं।
बिल्कुल सही और सुंदर प्रस्तुति, यशोदा दी।
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteसादर
पढ़ें- कोरोना
स्त्रियों का हास्य बोध
ReplyDeleteऔर जिजीविषा
आह। .
यही बात मैं अपनी माँ के लिए कहती हूँ कि काश आपकी ये दो आदतें मुझमे आ जाती तो जीवन कितना सरल दीखता मुझे भी
बहुत सुंदर सृजन
सादर
बहुत अच्छी कविता यशोदा, बहुत समय बाद आई हूँ अब आती रहूँगी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना मैम।
ReplyDeleteवाह , यही जिजीविषा तो नारी को सबसे अलग करती है ।उसका हौसला कोई नहीं तोड़ पाता ।हँस कर , सह कर सब निभा लेती है ।
ReplyDelete