बीत गई
फीकी दीपावली
उत्साहविहीन
सुविधा विहीन
यंत्रवत जीवन जिया
एक मशीन की तरह
सुबह से शाम तक
रात में भी सोने के पहले
एक चिंतन कि
कल की कल-कल
मन में असंतोष
खुशियाँ सारी समाप्त,
मास्क पहनने
और हाथ धोने में
बची खुची कसर
चढ़ गई बनकर भेंट
इस कहर भरी
विदेशी विषाणुओं रचित
महामारी कोरोना की भेट
घर पर रहकर मानव
महज निसहाय 'औ'
किस्से -कहानी तक
रह गया सीमित
यह महोत्सव दीपावली का
रस्म अदाई हो गई है..
-यशोदा
तस्वीर क्या बोले समूह मे स्वरचित
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत भावप्रवण और मार्मिक प्रस्तुति।
ReplyDeleteसमसामयिक और आज के जीवन संघर्ष को चित्रित करती कृति..
ReplyDeleteशुरू के कुछ महीने थोड़ा भयभीत हुई
ReplyDeleteफिर कुछ दिनों चिन्ताग्रस्त हुई
फिर कुछ दिनों से अभ्यस्त हुई
अब मस्त हूँ
बस आपकी चिन्ता है
अपना ध्यान रखें
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteआँखें नाम करती रचना ...
ReplyDeleteदीवाली की अगली सुबह कुछ बतकही हमने भी लिख रखी है अपने पास :-
कल रात हमने एलईडी के बावज़ूद
कई सारे दीए भी जलाए ..
अपनी सभ्यता और संस्कृति वाला
सनातनी धर्म जो निभाना था ।
और साथ ही मुहल्ले के होड़ में ,
अपने पड़ोसियों के जोड़ में हमने
लटकायी अपने भी मकान के आगे
गिरगिट या चंद मुखौटेधारी इंसानों के मानिंद
पल-पल रंग और अपनी चाल बदलती
कुछ विदेशी रंग-बिरंगी , चमचमाती ,
छोटी-छोटी चकमक बिजली की झालर भी।
अब आधुनिकता के दौड़ में पिछड़ ना जाऊँ
इस डर से निकला बाहर घर से
कल शाम हमने पटाखे भी जलाए।
पड़ोसियों द्वारा भिजवायी मिठाईयों के
ब्रांड से भी बेहतर मिठाईयों के पैकेट बँटवाए।
हम तो किसी से कम नहीं मेरे भाई !
कल रात हम सब ने क्या खूब दीवाली मनाई ...
घने अंधियारे के बाद उजाला निश्चित है
ReplyDeleteरात में भी सोने के पहले
ReplyDeleteएक चिंतन कि
कल की कल-कल
मन में असंतोष
खुशियाँ सारी समाप्त,
सच में इस साल तो वो हुआ जो कभी सोचा ही न था...बहुत ही सुन्दर समसामयिक लाजवाब सृजन।
कभी तो वह सुबह होगी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,यशोदा दी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना इस बार के त्यौहार कुछ इसी तरह से मनाये जा रहे है समय समय की बात है
ReplyDeleteकोरोना से उत्पन्न मन का का तंज रचना में मुखरित हो गया।
ReplyDeleteयथार्थ सृजन।
यथार्थपूर्ण सामायिक चिंतन में हालात की कश्मकश से उबरने का सार्थक दृष्टिकोण।
ReplyDeleteबधाई एवं शुभकामनाएँ।