तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा

Wednesday, 16 December 2020

रसहीन उत्सव

बीत गई
फीकी दीपावली
उत्साहविहीन
सुविधा विहीन
यंत्रवत जीवन जिया 
एक मशीन की तरह

सुबह से शाम तक
रात में भी सोने के पहले
एक चिंतन कि
कल की कल-कल
मन में असंतोष
खुशियाँ सारी समाप्त,

मास्क पहनने
और हाथ धोने में
बची खुची कसर
चढ़ गई बनकर भेंट
इस कहर भरी
विदेशी विषाणुओं रचित
महामारी कोरोना की भेट

घर पर रहकर मानव
महज निसहाय 'औ'
किस्से -कहानी तक
रह गया सीमित
यह महोत्सव दीपावली का
रस्म अदाई हो गई है..
-यशोदा
तस्वीर क्या बोले समूह मे स्वरचित






13 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बहुत भावप्रवण और मार्मिक प्रस्तुति।

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  3. समसामयिक और आज के जीवन संघर्ष को चित्रित करती कृति..

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  4. शुरू के कुछ महीने थोड़ा भयभीत हुई
    फिर कुछ दिनों चिन्ताग्रस्त हुई
    फिर कुछ दिनों से अभ्यस्त हुई
    अब मस्त हूँ
    बस आपकी चिन्ता है
    अपना ध्यान रखें

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  5. बहुत सुंदर रचना

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  6. आँखें नाम करती रचना ...
    दीवाली की अगली सुबह कुछ बतकही हमने भी लिख रखी है अपने पास :-
    कल रात हमने एलईडी के बावज़ूद
    कई सारे दीए भी जलाए ..
    अपनी सभ्यता और संस्कृति वाला
    सनातनी धर्म जो निभाना था ।
    और साथ ही मुहल्ले के होड़ में ,
    अपने पड़ोसियों के जोड़ में हमने
    लटकायी अपने भी मकान के आगे
    गिरगिट या चंद मुखौटेधारी इंसानों के मानिंद
    पल-पल रंग और अपनी चाल बदलती
    कुछ विदेशी रंग-बिरंगी , चमचमाती ,
    छोटी-छोटी चकमक बिजली की झालर भी।
    अब आधुनिकता के दौड़ में पिछड़ ना जाऊँ
    इस डर से निकला बाहर घर से
    कल शाम हमने पटाखे भी जलाए।
    पड़ोसियों द्वारा भिजवायी मिठाईयों के
    ब्रांड से भी बेहतर मिठाईयों के पैकेट बँटवाए।
    हम तो किसी से कम नहीं मेरे भाई !
    कल रात हम सब ने क्या खूब दीवाली मनाई ...

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  7. घने अंधियारे के बाद उजाला निश्चित है

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  8. रात में भी सोने के पहले
    एक चिंतन कि
    कल की कल-कल
    मन में असंतोष
    खुशियाँ सारी समाप्त,
    सच में इस साल तो वो हुआ जो कभी सोचा ही न था...बहुत ही सुन्दर समसामयिक लाजवाब सृजन।

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  9. कभी तो वह सुबह होगी

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  10. बहुत सुंदर रचना,यशोदा दी।

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  11. बहुत ही सुंदर रचना इस बार के त्यौहार कुछ इसी तरह से मनाये जा रहे है समय समय की बात है

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  12. कोरोना से उत्पन्न मन का का तंज रचना में मुखरित हो गया।
    यथार्थ सृजन।

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  13. यथार्थपूर्ण सामायिक चिंतन में हालात की कश्मकश से उबरने का सार्थक दृष्टिकोण।
    बधाई एवं शुभकामनाएँ।

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