कोई कवि नहीं था
रावण के राज्य में
भाषा थी सिर्फ़ लंकाई
जो रावण और
उसके क़रीबी दैत्य बोलते थे
राम !
तुम्हारे नहीं रहने के बाद भी
तुम हो सर्वत्र,
तो इसलिए भी
तुम साहित्य में हो
केवल भाषा में नहीं
वो भी
इसलिए ही कि तुम्हारे साथ कवि थे !
भाषा का अमर रस
कवि के पास ही होता है,
केवल दरबारी भाषा बोलने वाली
जनता के पास नहीं
राम !
तुम और तुम्हारे राज्य की
भाषा भी बची हुई है
वह तो केवल साहित्य है
जहाँ तुम हो,
वहीं तुम्हारी भाषा भी है!
साहित्य ही पहचानता है कि
राम क्या है और
रावण क्या नहीं है
राम!
मरे हुए को समझाने कहूँगा नहीं,..क्योंकि
मरा हुआ आदमी समझता भी कहाँ है,
उसकी तो भाषा भी नहीं होती !
एक कहावत है
''कौन पढ़ाये मूर्खों को कि
भाषा से साहित्य बनता है''
किन्तु ''साहित्य से ही
भाषा समृद्ध'' होती है,
और उन्हें तो कतई नहीं कि
जो भाषा, साहित्य, संस्कृति और
विचार के प्रति कहीं से भी गंभीर न हों
-मन की उपज
तुम देना साथ मेरा
Saturday 19 June 2021
कोई कवि नहीं था,रावण के राज्य में
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भाषा से साहित्य बनता है''
ReplyDeleteकिन्तु ''साहित्य से ही
भाषा समृद्ध'' होती है,
वाह!!!
क्या बात...
भगवान राम जैसे महापुरुष को मर्यादा पुरुषोत्तम से लेकर भगवान राम तक युग युग तक परम श्रद्देय ईश्वरत्व के रूप में जीवित रखना सिर्फ और साहित्य से ही सम्भव है...और साहित्य सम्भव है भाषा से।अपनी भाषा हिन्दी को छोड़कर अंग्रेजी के पीछे भागने वालों को अपने अस्तित्व को ध्यान में रख इस पर चिन्तन अवश्य करना चाहिए...
बहुत ही लाजवाब चिन्तनपरक सृजनहेतु बधाई एवं शुभकामनाएं ।
आभार..
Deleteसादर..
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! अद्भुत विश्लेषण
ReplyDeleteआभार गगन भाई
Deleteसादर..
बहुत चिंतन मनन भाषा और साहित्य पर . विचारणीय
ReplyDeleteआभार दीदी..
Deleteसादर नमन..
बहुत सुंदर विचारणीय प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सुंदर, शब्द-भाषा-साहित्य ही मन पर प्रभावी
ReplyDeleteछाप छोड़ जाते हैं
बहुत ही लाजबाब विचारणीय आलेख,यशोदा दी।
ReplyDeleteकल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।
ReplyDeleteआपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
आभार दीदी..
Deleteसादर नमन..
बहुत खूब !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर आलेख
ReplyDelete'साहित्य ही पहचानता है कि राम क्या है और रावण क्या नहीं।' - जी बिल्कुल। सार्थक प्रस्तुति के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई। सादर।
ReplyDeleteआभार वीरेन्द्र भैय्या
Deleteसादर
chandigarh escort
ReplyDeletesolan escort
वाह! भाषा और साहित्य के अनुपम मेल को दर्शाती सुंदर रचना, राम ने न जाने कितने रचनाकारों को प्रेरित किया, उनकी कथा लिखने के लिए भविष्य में न जाने कितने कवि पैदा होंगे
ReplyDeleteआभार दीदी
Deleteसादर
बहुत सुंदर रचना mam
ReplyDeleteइतनी सुंदर और सार्थक रचना तक मैं अभी तक नहीं पहुंच पाई, क्षमा करिएगा दीदी ।
ReplyDeleteबहुत ही गूढ़ और मन तक उतरता उत्कृष्ट विश्लेषण । वाकई विचारणीय चिंतन । बहुत शुभकामनाएं आपको ।
आभार सखी,
Deleteशुभ प्रभात..
ये जो मन है न मेरा
बस ठोक-बजाकर लिखवाता है
सादर..
रावण स्वयं परम विद्वान और श्रेष्छ रचनाकार था -शिव ताण्डव स्तोत्र का रचयिता एवं गायक.
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर, विचारणीय प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह!! अति सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (24-7-22} को "सफर यूँ ही चलता रहें"(चर्चा अंक 4500)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
ठीक कहा ,साहित्य भाषा को समृद्ध करता है।
ReplyDeleteमरा हुआ आदमी समझता भी कहाँ है,
ReplyDeleteउसकी तो भाषा भी नहीं होती !
अप्रतिम ! जय श्री राम !