Sunday 13 May 2012

ओ मेरी माँ वो तू ही है..........दीप्ति शर्मा

जब पहला आखर सीखा मैंने
लिखा बड़ी ही उत्सुकता से 

हाथ पकड़ लिखना सिखलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

अँगुली पकड़ चलना सिखलाया

चाल चलन का भेद बताया
संस्कारों का दीप जलाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

जब मैं रोती तो तू भी रो जाती

साथ में मेरे हँसती और हँसाती
मुझे दुनिया का पाठ सिखाती
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

खुद भूखा रह मुझे खिलाया

रात भर जगकर मुझे सुलाया
हालातों से लड़ना तूने सिखाया
ओ मेरी माँ वो तू ही है ।

© दीप्ति शर्मा

15 comments:

  1. ओ मेरी माँ वो तू ही है………माँ को नमन

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  2. maa to bas aisi hi hoti hai ...nice :)

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    1. जय जिनेन्द्र
      शुक्रिया मोनिका

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  3. सार्थक चित्रण किया है आपने माँ का..बधाई !!

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    1. शुक्रिया बृजेन्द्र भाई

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  4. ओ माँ वो तू ही तो है...
    एक आँसू भी मेरा जिस से टकराता है पहले,
    वो साया है आँचल का तेरे.....हर मुसीबत जो मेरी 'हर' ले !
    पहुँचे मुझ तक कोई बला कैसे,
    तू बन के खुदा.., रोक लेती है उसे!
    ओ माँ वो तू ही तो है...

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    1. शुक्रिया अनीता जी
      अब आप अपने लोगों के बीच में आ गई हैं

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  5. Replies
    1. मुझसे गलती हो गई भाई
      इस लिंक को मुझे दीप्ति जी के ब्लाग से लेना था
      दीप्ति जी से कहूँगी इस ब्लाग के विजिट कर ले
      यशोदा

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  6. सुंदर भाव भरी रचना...
    हार्दिक बधाई।

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    1. शुक्रिया हबीब साहब

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  7. बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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    1. धन्यवाद
      आपने मुझे प्रसन्न कर दिया चौबे जी
      सादर

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  8. माँ के प्रति आपके ये अनुरागी भाव सचमुच आदरणीय हैं
    भावमय प्रस्तुति

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    1. शुक्रिया अंजनी भाई

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