Sunday 6 May 2012

मरीचिका ......................अनन्या अंजू

वह दृष्टि
अब भी
मुझमे है......!
उसमे डूबी
लड़ रही हूं
मैं ,स्वयं  से !
क्या ..
भ्रम है वो मेरा
या फिर
है मरूभूमि में
जल  का आभास ....!!
छोड़ दूँ खोज
किसी डर से
या दौड लूँ ,उस
परछाई के पीछे .....!
जिज्ञासावश  देखा
फिर से उन आँखों में
जाने क्या सूझा ,
दौड पड़ी
उस जल जैसे आभास को
अंजुरी में भरने ...!!!
जानती थी
नहीं , ये कुछ ओर
है केवल
मन की मरीचिका ..!!
शायद ...
जीवन भी तो
है मात्र...
एक जीजिविषा

-अनन्या अंजू

10 comments:

  1. बहुत सुंदर....................

    आभार.

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  2. बहुत खूब .... उत्तम अभिव्यक्ति .... !!

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  3. शुभ प्रभात दीदी
    धन्यवाद जीजी

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  4. वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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    1. शुक्रिया सीमा बहन

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    1. धन्यवाद ओंकार भाई

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  6. Replies
    1. धन्यवाद नासवा जी

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