वह दृष्टि
अब भी
मुझमे है......!
उसमे डूबी
लड़ रही हूं
मैं ,स्वयं से !
क्या ..
भ्रम है वो मेरा
या फिर
है मरूभूमि में
जल का आभास ....!!
छोड़ दूँ खोज
किसी डर से
या दौड लूँ ,उस
परछाई के पीछे .....!
जिज्ञासावश देखा
फिर से उन आँखों में
जाने क्या सूझा ,
दौड पड़ी
उस जल जैसे आभास को
अंजुरी में भरने ...!!!
जानती थी
नहीं , ये कुछ ओर
है केवल
मन की मरीचिका ..!!
शायद ...
जीवन भी तो
है मात्र...
एक जीजिविषा
अब भी
मुझमे है......!
उसमे डूबी
लड़ रही हूं
मैं ,स्वयं से !
क्या ..
भ्रम है वो मेरा
या फिर
है मरूभूमि में
जल का आभास ....!!
छोड़ दूँ खोज
किसी डर से
या दौड लूँ ,उस
परछाई के पीछे .....!
जिज्ञासावश देखा
फिर से उन आँखों में
जाने क्या सूझा ,
दौड पड़ी
उस जल जैसे आभास को
अंजुरी में भरने ...!!!
जानती थी
नहीं , ये कुछ ओर
है केवल
मन की मरीचिका ..!!
शायद ...
जीवन भी तो
है मात्र...
एक जीजिविषा
बहुत सुंदर....................
ReplyDeleteआभार.
nicely expressed....
ReplyDeleteबहुत खूब .... उत्तम अभिव्यक्ति .... !!
ReplyDeleteशुभ प्रभात दीदी
ReplyDeleteधन्यवाद जीजी
वाह ... बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteशुक्रिया सीमा बहन
Deletesundar abhivyakti
ReplyDeleteधन्यवाद ओंकार भाई
Deletesach kaha ... bahut khoob likha hai ...
ReplyDeleteधन्यवाद नासवा जी
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