रेत पर नाम लिख लिख मिटाते सभी,
तुमने पत्थर पे लिख कर मिटाया हमें
शुक्रिया, मेहरबानी करम, देखिये
एक पल ही सही गुनगुनाया हमें
तुम शनासा थे दैरीना कल शाम को,
बेरुखी ओढ़ कर फिर भी हमसे मिले
हमको तुमसे शिकायत नहीं है कोई,
अपनी परछाईं ने भी भूलाया हमें
आये हम बज़्म में सोच कर सुन सकें
चंद ग़ज़लें तुम्हारी औ’ अशआर कुछ
हर कलामे सुखन बज़्म में जो पढ़ा
वो हमारा था तुमने सुनाया हमें
ध्यान अपना लगा कर थे बैठे हुए,
भूल से ही सही कोई आवाज़ दे
आई लेकर सदा न इधर को सबा,
सिर्फ़ तन्हाईयों ने बुलाया हमें
ढाई अक्षर का समझे नहीं फ़लसफ़ा,
ओढ़ कर जीस्त की हमने चादर पढ़ा
एक गुलपोश तड़पन मिली राह में
जिसने बढ़ कर गले से लगाया हमें
तुमने लहरा के सावन की अपनी घटा
भेजे पैगाम किसको, ये किसको पता
ख़्वाब में भी न आया हमारे कोई
तल्खियों ने थपक कर सुलाया हमें...
-राकेश खण्डेलवाल
lge rho bhai
ReplyDeleteधन्यवाद,
ReplyDeleteआदित्य भाई लगे बिना कोई काम नहीं न होता
wah !bahut accha laga padh kar ....bahut khoob
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना और सुन्दर शब्दों का संयोजन .................
ReplyDeleteधन्यवाद संध्या बहन
Deleteशुक्रिया पूनम बहन
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