अक्सर पिछले पन्नों में ही
लिखी जाती है कोई कविता
फिर ढूंढती है अपने लिए
एक अदद जगह
उपहारस्वरूप दी गई
किसी डायरी में
फिर किसी की जुबां में
फिर किसी नामचीन पत्रिका में
फिर भी न जाने क्यों
भटकती फिरती है ये मुसाफिर
खुद को पाती है एकदम प्यासा
अचानक इस रेगिस्तान में
उठते बवंडर संग उड़ चलती हैं ये
बवंडर थककर खत्म कर देता है
अपना सफर
लेकिन ये उड़ती जाती हैं
और फैला देती है
अपना एक-एक कतरा
उस अनंत में जो रहस्यमयी है।
लेकिन एक खास बात
इसके बारे में,
आगोश से इसके चीजें
गायब नहीं होतीं
और न ही होती है
इनकी इससे अलग पहचान
लेकिन यह कविता
शायद! अपने जीवनकाल में
सबसे ज्यादा खुश होती है
यहां तक पहुंचकर
क्योंकि
ब्रह्माण्ड के नाम से जानते हैं
हम सब इसे।
लिखी जाती है कोई कविता
फिर ढूंढती है अपने लिए
एक अदद जगह
उपहारस्वरूप दी गई
किसी डायरी में
फिर किसी की जुबां में
फिर किसी नामचीन पत्रिका में
फिर भी न जाने क्यों
भटकती फिरती है ये मुसाफिर
खुद को पाती है एकदम प्यासा
अचानक इस रेगिस्तान में
उठते बवंडर संग उड़ चलती हैं ये
बवंडर थककर खत्म कर देता है
अपना सफर
लेकिन ये उड़ती जाती हैं
और फैला देती है
अपना एक-एक कतरा
उस अनंत में जो रहस्यमयी है।
लेकिन एक खास बात
इसके बारे में,
आगोश से इसके चीजें
गायब नहीं होतीं
और न ही होती है
इनकी इससे अलग पहचान
लेकिन यह कविता
शायद! अपने जीवनकाल में
सबसे ज्यादा खुश होती है
यहां तक पहुंचकर
क्योंकि
ब्रह्माण्ड के नाम से जानते हैं
हम सब इसे।
-तिथि दानी
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteयशोदा की खोजी नज़रों की दाद देती हूँ....
अनु
शुभ प्रभात दीदी
ReplyDeleteशुक्रिया
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
भाई
Deleteशुभ प्रभात
शुक्रिया
सादर
बहुत खूब .... अच्छा चयन
ReplyDeleteशुक्रिया दीदी
Deleteप्रणाम
bahut sundar...alag laga padh kar ......
ReplyDeleteआभार रेवा बहन
Deleteआप आई... मैं अभिभूत हुई
सादर
बहुत प्रभावी रचना ... स्तब्ध करते शब्द ...
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवास्तविक प्रतिक्रिया
आभार
रचना आकार लेकर आकाश में निकल जाती है. बहुत सुंदर वर्णन.
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteभारत भूषण भाई
गज़ब की खोज
ReplyDeletedi, kamal ki post hoti hai aapki...
ReplyDeleteतुम भी कम नहीं हो भाई सुरेश
Deletebahut hi achchhi kavita... Padhkar laga kuchh alag bata hai.
ReplyDeleteशुक्रिया उपेन्द्र भाई
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