Thursday, 19 July 2012

दिन सावन के...................विनोद रायसरा

दिन सावन के
तरसावन के


कौंधे बिजली
यादें उजली
अंगड़ाई ले
सांझें मचली

आते सपने
मन भावन के...

चलती पछुआ
बचते बिछिआ
सिमटे-सहमें
मन का कछुआ

हरियाए तन
सब घावन के

नदिया उमड़ी
सुधियां घुमड़ी
लागी काटन
हंसुली रखड़ी

छाये बदरा
तर-सावन के..

बरसे बदरा
रिसता कजरा
बांधूं कैसे
पहुंची गजरा

बैरी दिन हैं
दुख पावन के...

मीठे सपने
कब है अपने
चकुआ मन का
लगता जपने

कितने दिन हैं
पिऊ आवन के..


--विनोद रायसरा

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर जीवंत चित्रण ...
    सुन्दर प्रस्तुति

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  2. bhasha aur bhav dono ka khoobsurat sanyojan rachna ko char chand lagata hai...madhur bhav liye huye is kavyatmak kriti ke liye badhai sweekar karen..

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  3. शुक्रिया.....मंजू दीदी

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  4. bahur sundr abhivyakti achhi lagi

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  5. शुक्रिया सुनील भाई

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  6. इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकार करें.

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , आभारी होऊंगा .

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  7. सावन पर इतना जबरदस्त संकलन किया है आपने यशोधरा जी! के जेठ में भी पढ़ें तो सावन की फुहारों का आनंद आये,,

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  8. साधुवाद आपको
    मूड होना चाहिये
    कभी भी...
    कुछ भी मनाया जा सकता है
    सादर

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  9. सावन का सुमदर चित्रण है...
    सुंदर भाव...


    यही तोसंसार है...




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  10. सुन्दर सावन ..मन भावन !!

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  11. ...................
    बहुत सुन्दर :-)
    ......................

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  12. मन के भावों को सुन्दर मन भावन शब्दों में पिरोकर सुन्दर माला बना दिया विनोद जी आपने
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