Friday, 13 July 2012

सावन के झूले...............राजेश राज चौहान

मेरे गांव के सावन के झूले,
कैसे उनको मेरा भोला मन भूले,,
सजना संग सजनी खिल मुसकाती,
धूले बैर भाव प्यार मन मे घुले,,
मेरे गांव के.......1

 
ना कोई उम्र का बंधन,
नीम, अम्बिया, पीपल, चंदन,,
क्या बच्चे क्या बूढ़े सब,
चहु ओर गीतो मे सावन वंदन,,
ना कोई उम्र.......2

झूले कभी अकेले कभी दुकेले,

भूले मन सब कष्टो के झमेले,,
ऊमड़-घुमड़कर काली घटाये,
अबतो हर पल सवान मस्त मजे ले,,
झूले कभी अकेले.......3

इस पार कभी तो उस पार कभी,

बावरा मन तितली-सा उडता यार अभी,,
ख़िलखिलाते खेत लहलहाती फसले,
हर्ष बिखरे सार्थक धरा का भार तभी,,
इस पार कभी तो.......4

सावन मचले रिमझिम रिमझिम,

पानी बरसे छम छम छम,,
मयुर नाचते पंख पसारे,
नीड़ों से होती ची-ची हरदम,,
सावन मचले.......5


-राजेश राज चौहान

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर सावन के झूले
    और उन झूलो संग मस्ती की यादे..
    बहुत प्यारी रचना और पिक भी...
    :-)

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  2. शुक्रिया रीमा बहन

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  3. वाह ... बहुत ही बढिया

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    1. धन्यवाद सीमा बहन

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