Tuesday, 10 July 2012

तुम्हारी पलकों की कोर पर...........''फाल्गुनी''

कुछ मत कहना तुम
मैं जानती हूँ
मेरे जाने के बाद
वह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर
रुका हुआ है
चमकीला मोती
टूटकर बिखर जाएगा
गालों पर
और तुम घंटों अपनी खिड़की से
दूर आकाश को निहारोगे
समेटना चाहोगे
पानी के पारदर्शी मोती को,
देर तक बसी रहेगी
तुम्हारी आँखों में
मेरी परेशान छवि
और फिर लिखोगे तुम कोई कविता
फाड़कर फेंक देने के लिए...
जब फेंकोगे उस
उस लिखी-अनलिखी
कविता की पुर्जियाँ,
तब नहीं गिरेगी वह
ऊपर से नीचे जमीन पर
बल्कि गिरेगी
तुम्हारी मन-धरा पर
बनकर काँच की कि‍र्चियाँ...
चुभेगी देर तक तुम्हें
लॉन के गुलमोहर की नर्म पत्तियाँ।


----स्मृति जोशी ''फाल्गुनी''

16 comments:

  1. कोमल भाव लिए रचना...
    सुन्दर...
    :-)

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    1. शुभ प्रभात
      शुक्रिया रीमा दी

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  2. Kisi se ;khas kr apno se ; manmutav ka bhav khud ko kushtt dena hi he. I like the imagination of the poetess in comparison of paper missiles with pointed glass needles. Achch ho kisi ka dil na dukhao .

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    1. धन्यवाद मलिक साहब

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  3. वाह...

    बहुत सुन्दर....

    सस्नेह
    अनु

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    1. शुभ प्रभात दीदी
      धन्यवाद दी

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  4. वाह ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  5. बहुत खूब ... ऐसे छुपे हुवे लम्हे वो मोटी बन के मीकल आते हैं तकलीफ देते हैं ...

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    1. आभारी हूँ
      शुक्रिया

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  6. Replies
    1. धन्यवाद भाई
      स्मृति दी की कलम
      हरदम दिल को
      छूती हुई चलती है

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  7. sach me un yadon ki narm pattiyan bahut chubhati hai..

    Kya bhav ukere hai !

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    1. शुक्रिया...भाई दयानन्द जी

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