Monday, 6 November 2017

ऐसे ही अज्ञानी सर्वत्र हैं....


ज्ञान... 
किसी घराने की 
अनुशंसा नहीं कि
किसी ने कहा और 
कोई अमर हो गया
कालजयी बन गया
इतना भी नहीं तो 
वर्ष का सर्वश्रेष्ठ हो गया....
बाज़ार इसी तरह 
मूर्खों की मतिभ्रष्ट करता है....
बाज़ार को जो 
पीकदान न समझे 
वह ज्ञानी नहीं 
और ऐसे ही 
अज्ञानी सर्वत्र हैं....

बहरहाल.....
ज्ञान और भाषा 
दोनों भले ही 
किसी स्तर पर 
मौन हों, 
पर तब 
मौन ही भाषा 
और वह
ज्ञान की रंगत का 
प्रतिनिधित्व करता है ।
-यशोदा
मन की उपज

4 comments:

  1. लाज़वाब बस लाज़वाब रचना दी बहुत सुंदर लिखा आपने....वाह्ह्ह...मौन की भाषा ज्ञान की रंगत का प्रतिनिधित्व करता है।👌👌

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  2. सच में
    सच है...
    सादर

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  3. Sach sirph Sach...
    Bina maoun ke gyan nahi aata...
    Aur Bina gyan ke maoun nahi aata...

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