Thursday, 9 November 2017

पन्ना एक पलटने के बाद....


भाषा और
ज्ञान के बाद भी
बाकी है बहुत कुछ
ये भाषाएँ
ये ज्ञान की बातें
रहने दीजिए..सीमित
समझता है कौन
आज के इस युग में

इन बातों को...
युग की बात को
युग तक ही रखें...

आज-कल..
इस तरह की भाषा
और ज्ञान भी इसी
तरह का चाहिए..
मसलन..

मौसम मन का
हो जाता है अजीब...
रहता है हरदम...
आवाज के बगैर..
रहता है दर्द 
रिसता है मन का
बुझती सी है
खुशियाँ..
आँगन की...
पन्ना एक पलटने के बाद
आ जाती वापस...
सुगंध एक मादक सी
काफूर हो जाता है
दर्द मन का..

खिल जाते हैं फूल
बिखरता है मकरंद
-यशोदा
मन की उपज





12 comments:

  1. विवेचना हेतु मन को विवश करती झकझोर देनेवाली सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकार करें

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  2. वाह.....
    बेहतरीन....
    सादर

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  3. मन को झकझोरती...बहुत सुंदर रचना

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 नवम्बर 2017 को साझा की गई है..................http://halchalwith5links.blogspot.comपर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. वाह ! मन के मौसम को समझने में ज़माने बीत गए फिर भी शोध और चिंतन ज़ारी है। मन की किताब के पन्नों में कई पन्ने सुखद अनुभूति से आप्लावित हैं तो कहीं कचोटती अव्यक्त आवाज़ें हैं। मन के मौसम का यह झौंका शीतल बयार का एहसास है। उत्कृष्ट रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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  6. मन का मौसम....
    वाह!!!
    लाजवाब अभिव्यक्ति....

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  7. पन्ना एक पलटने के बाद
    आ जाती वापस...
    सुगंध एक मादक सी
    काफूर हो जाता है
    दर्द मन का..
    खिल जाते हैं फूल
    बिखरता है मकरंद।

    Wahhhh। मोहक। मनोहर। मुदित करती मधुरम रचना। ये बातें दिल की बातें हैं और बखूबी दिल तक पहुंची है। शानदार लेखनी आदरणीया दी जी।

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  8. वाह ! क्या बात है ! बहुत सुंदर प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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  9. बहुत ही सुन्दर दीदी ! बहुत ही अच्छा लिखा है आपने

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  10. आदरणीययशोदा दीदी ------ बहुत ही उत्कृष्ठ भावों से सजी सुंदर रचना | सच है मन के मौसम को कौन समझ पाया है और इसकी भाषा आज तक अपरिभाषित है | बधाई और शुभकामना आपको ------

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