Saturday, 11 November 2017

समाई हुई हैं इसी जिन्दगी में



क्या है...
ये कविता..
क्यों लिखते हैं....
झांकिए भीतर
अपने जिन्दगी के
नजर आएगी  एक
प्यारी सी कविता

सुनिए ज़रा
ध्यान से...
क्या गा रही है 

ये कविता....
देखिए इस नन्हें बालक
की मुस्कुराहट को
नज़र आएगी एक
प्यारी सी
मुस्काती कविता....

दिखने वाली
सभी कविताएँ

जिनमें..
हर्ष है और
विषाद भी है

सर्जक है
विध्वंसक भी है

इसमे संयोग है...
और वियोग भी है

है पाप भी
और प्रेम का
प्रदर्शन का
संगम है

समाई हुई हैं
इसी जिन्दगी में

ये प्यारी सी 
कविता
-यशोदा
मन की उपज
 


13 comments:

  1. बहुत प्यारी है सुंदर भाव से रची हुई आपकी कविता दी👌👌

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  2. सुंदर मन की उपज। ऐसा लगा जैसे आदरणीय यशोदा दीदी मुझे ही कह रही हैं।
    अन्यथा न लें, Bed Rest में हूँ मेरे मन की उपज भी बढ गई है।
    सादर अभिनंदन बधाई।

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  3. वाह !!यशोदा जी ,मन से निकली कविता !!!

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  4. समाई हुई हैं इसी जिन्दगी में ये प्यारी सी कविता.....
    बेजोड़ लिखती हैं मन से निकली कविता

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (13-11-2017) को
    "जन-मानस बदहाल" (चर्चा अंक 2787)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/11/43.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  7. सुंदर अभिव्यक्ति।

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  8. सुन्दर भाव संयोजन
    अच्छी रचना

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  9. बहुत ही सुन्दर कविता आपकी
    वाह!!!

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  10. सुंदर लाजवाब कविता

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