Thursday, 14 December 2017

एक और शाम....



एक और शाम
उतर आयी आँखों में
भर गयी नम किरणें
खुला यादों का पिटारा...
भीग गयी पलकें
फैलकर उदासी 
धुंधला गयी चाँद को 
झोंका सर्द हवा का
लिपटकर तन से
छू गया अनछुआ मन
ठंडी हथेलियों को चूम
चाँदनी महक गयी 
ओढ़ यादों की गरमाहट
लब मुस्कुराये
जैसे हो स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा
- यशोदा
मन की उपज

8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-12-2017) को
    "रंग जिंदगी के" (चर्चा अंक-2818)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जी नमस्ते,
    आप की रचना को शुक्रवार 15 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. एक एक शब्द भावना में डूबकर मन में समाता हुआ बहुत शानदार रचना।
    कमाल लिखती है आप...... बेमिसाल

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  4. बहुत खूबसूरत...कम शब्दों में पुरी भावनाओं का रस मिला दिया आपने..!

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  5. खुला यादों का पिटारा
    भीग गयी पलकें
    वाह!!!!
    लाजवाब यादें...
    बहुत सुन्दर

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  6. अंतर्मन को स्पर्श करती सुन्दर अभिव्यक्ति
    सादर

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  7. ठंडी हथेलियों को चूम
    चाँदनी महक गयी
    ओढ़ यादों की गरमाहट
    लब मुस्कुराये
    जैसे हो स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा

    अनुपम, अभिनव।

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