ऐ कविता
एक तलब सी
बन गई हो
इस जिंदगी में तुम......
जो बिन तुम्हारे
अधूरी सी
हो चली है.......
हर सपनो में तुम
और
तुम में ही
हर सपना है मेरा.........
जानता हूँ
दिल में रखे
ये मोहब्बत के पन्ने
एक रोज
उड़ जाएंगे हवा में
काफूर बन के…....
फिर भी
कम नहीं होती
ये तलब
तेरे प्यार की......
सोचता हूँ
ये क्या कम है
कि जिंदगी
खामोश होकर भी
बयां करेगी किस्से
-यशोदा
मन की उपज
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआप की रचना को शुक्रवार 8 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...
सुन्दर
ReplyDeleteऐ कविता
ReplyDeleteएक तलब सी
खामोश होकर भी
बयां करेगी किस्से
बहुत सुंदर..
ReplyDeleteवाह ! खूबसूरत रचना ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर भाव जैसे एक आदत या फिर लत जैसे चाय की। बहुत सरल सहज भावों का प्रवाह।
ReplyDeleteशुभ रात्री।
ये तलब
ReplyDeleteतेरे प्यार की......
सोचता हूँ
ये क्या कम है
कि जिंदगी
खामोश होकर भी
बयां करेगी किस्से --क्या बात है !!!!! ये तलब ना होती तो सृजन कहाँ से आता ? सादर सस्नेह ----
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