Monday, 29 January 2018

हो रहे पात पीत


हो रहे 
पात पीत
सिकुड़ी सी 
रात रीत
ठिठुरन भी 
गई बीत
गा रहे सब
बसंत गीत
भरी है
मादकता
तन-मन-उपवन मे.
समय होता 
यहीं व्यतीत
बौराया मन
बौरा गया तन
और बौराई
टेसू-पलाश
गीत-गात में 
भर गई प्रीत
-मन की उपज

6 comments:

  1. आदरणीय यशोदा दीदी -- बसंत पर छोटा सा पर उत्कृष्ट लेखन !!!!!!

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  2. वाह
    बहुत सुंदर नवगीत
    सादर

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  3. सादर नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 29 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन- आज एक ही ब्लॉग से" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत बहुत सुंदर रचना मन की प्रीत जैसी।

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