साजिशों का बाजार है
सौदा करूं किसका
विधाता क्या
यही संसार है।।
कांटो पर चलना
आसान है दोस्तों यहां
फूलों से दर्द की
खुशबू आती
यही संसार हैं।।
समझाउं दिल को
यहां कैसे
हौसलों की उड़ान
हर कदम पर
दिखते यहां सैयाद
ही बेशुमार हैं।।
जज्बातों से खेलना,
है फ़ितरत इंसान की
लम्हा लम्हा दुरूह
क्या यही जीवन सार है।।
अंधेरे ही अंधेरे
उजाले को
खोजने जाएं कहां
श्रद्धा विश्वास का
यहां मिलता नहीं आधार है।
-मन की उपज
वाह
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteजज्बातों से खेलना,
ReplyDeleteहै फ़ितरत इंसान की
लम्हा लम्हा दुरूह
क्या यही जीवन सार है
बहुत सटीक एवं लाजवाब..
वाह!!!
बहुत उम्दा रचना आदरणीय .
ReplyDeleteआजकल की सच्चाई को जिस सादगी और कड़वाहट के साथ आपने पिरोया है, वो सोचने पर मजबूर करती है। साजिशों, फरेब, खोखले रिश्तों और कमजोर होते विश्वास के इस दौर में वाकई ये सवाल उठाना लाज़मी है कि क्या यही जीवन का सार है? फूलों से दर्द की खुशबू आना और हौसलों पर सैयाद का साया होना बहुत गहरे अर्थ लिए हुए हैं। कहीं न कहीं हम सब इस उलझे संसार का हिस्सा हैं, पर तुम्हारी ये लिखी बातें अंदर कुछ हिला देती हैं।
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