Saturday, 31 March 2012

दीप मेरे घर का जलता क्यों नहीं...... ममता किरण

दायरे से वो निकलता क्यों नहीं
ज़िंदगी के साथ चलता क्यों नहीं

बोझ सी लगने लगी है ज़िंदगी

ख़्वाब एक आँखों में पलता क्यों नहीं

कब तलक भागा फिरेगा ख़ुद से वो
साथ आख़िर अपने मिलता क्यों नहीं

गर बने रहना है सत्ता में अभी
गिरगिटों सा रंग बदलता क्यों नहीं

बातें ही करता मिसालों की बहुत
उन मिसालों में वो ढलता क्यों नहीं

ऐ ख़ुदा दुख हो गये जैसे पहाड़
तेरा दिल अब भी पिघलता क्यों नहीं

ओढ़ कर बैठा है क्यूँ खामोशियाँ
बन के लौ फिर से वो जलता क्यों नहीं

क्या हुई है कोई अनहोनी कहीं
दीप मेरे घर का जलता क्यों नहीं...... 
-----ममता किरण

6 comments:

  1. बोझ सी लगने लगी है ज़िंदगी
    ख़्वाब एक आँखों में पलता क्यों नहीं
    ओढ़ कर बैठा है क्यूँ खामोशियाँ
    बन के लौ फिर से वो जलता क्यों नहीं
    इन सवालों का जबाब मिलता क्यों नहीं .... !!

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल

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