Wednesday, 9 May 2018

सरेआम भले ही हो....यशोदा


उसे पाने की 
कोशिश का
चढ़ा है नशा..
है आ रही महक
गुलाब की
रात देखा था 
इक ख़्वाब सा
किया था हमने
इज़हार प्यार का
कर रहा हूँ इन्तेज़ार
तेरे इकरार का
किया है इक वादा
वफ़ा का
पर....
पुरज़ोर कोशिश
कि, मेरी मोहब्बत
सरेआम भले ही हो
पर तमाम न हो 
मन की उपज
-यशोदा

13 comments:

  1. वाह सखी दी लाजवाब छोटी सी रचना मे कितनी सुंदरता से सारे भाव समेट लिये सचमुच अद्भुत अद्वितीय

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  2. वाह्ह...दी लाज़वाब..👌👌👌👌

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  3. बेहतरीन,सुंदर .... बधाई।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (11-05-2018) को "वर्णों की यायावरी" (चर्चा अंक-2967) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  6. पुरज़ोर कोशिश
    कि, मेरी मोहब्बत
    सरेआम भले ही हो
    पर तमाम न हो.......बहुत सुन्दर! आभार!! नमन!!!

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  7. बहुत सुंदर यशोदा जी अंतिम छंद तो सम्पूर्ण सार कह गया

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  8. वाह!!यशोदा जी ,लाजवाब रचना ।

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  9. आदरणीय दीदे ००
    ये मुहब्बत खुदा करे ना बदनाम हो -
    बस एक सलाम तो इसके नाम हो ------
    बहुत ही सुंदर सृजन बहुत सारे भाव समेटता हुआ | सादर --

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