धरोहर
तुम देना साथ मेरा
Saturday, 24 February 2024
'साहित्य' अलग है, 'भाषा' अलग है
Thursday, 22 February 2024
झूठ छलकाती गागर ..
Saturday, 19 June 2021
कोई कवि नहीं था,रावण के राज्य में
कोई कवि नहीं था
रावण के राज्य में
भाषा थी सिर्फ़ लंकाई
जो रावण और
उसके क़रीबी दैत्य बोलते थे
राम !
तुम्हारे नहीं रहने के बाद भी
तुम हो सर्वत्र,
तो इसलिए भी
तुम साहित्य में हो
केवल भाषा में नहीं
वो भी
इसलिए ही कि तुम्हारे साथ कवि थे !
भाषा का अमर रस
कवि के पास ही होता है,
केवल दरबारी भाषा बोलने वाली
जनता के पास नहीं
राम !
तुम और तुम्हारे राज्य की
भाषा भी बची हुई है
वह तो केवल साहित्य है
जहाँ तुम हो,
वहीं तुम्हारी भाषा भी है!
साहित्य ही पहचानता है कि
राम क्या है और
रावण क्या नहीं है
राम!
मरे हुए को समझाने कहूँगा नहीं,..क्योंकि
मरा हुआ आदमी समझता भी कहाँ है,
उसकी तो भाषा भी नहीं होती !
एक कहावत है
''कौन पढ़ाये मूर्खों को कि
भाषा से साहित्य बनता है''
किन्तु ''साहित्य से ही
भाषा समृद्ध'' होती है,
और उन्हें तो कतई नहीं कि
जो भाषा, साहित्य, संस्कृति और
विचार के प्रति कहीं से भी गंभीर न हों
-मन की उपज
Wednesday, 16 December 2020
रसहीन उत्सव
घर पर रहकर मानव
महज निसहाय 'औ'
किस्से -कहानी तक
रह गया सीमित
यह महोत्सव दीपावली का
रस्म अदाई हो गई है..
-यशोदा
तस्वीर क्या बोले समूह मे स्वरचित
Sunday, 25 October 2020
नारी की आकांक्षा
एक दिलचस्प बात
कि ईश्वर ने स्त्री को
ऐसी शक्ति दी है
जिससे वह
पढ़ सकती है
किसी भी पुरुष के भावों को
और पुरुष द्वारा
दिया गया
सम्मान भाव को
स्थापित कर लेती है
अपने मन में वह स्त्री
शायद इसी लिए
स्त्री से दिखावा करना
संभव नहीं..।
-मन की उपज
टिप्पणी..
नारी की अभिलाषा और कार्य क्षमता का विश्लेषण..
रचना मन में स्वतः विस्फोटित हुई
Sunday, 10 May 2020
वक़्त की हर गाँठ पर ....मन की उपज
Saturday, 7 March 2020
जिजीविषा ....मन की उपज
स्त्रियों का हास्य बोध
और जिजीविषा
गिन नहीं पाएँगे आप
कितनों के निशाने पर रहती है स्त्री
हारी नहीं फिर भी
रहती है हरदम जूझती
कभी हंसकर..तो
कभी खामोशी से
या फिर करके विद्रोह..
कारण है एक ही
उसने हर तरह की
चुनौतियां और मुश्किलें
हंसकर पार की है
वजह है..
प्रकृति ने उसे
असंख्य गुण
व अद्भुत सहनशीलता
के गुणों से
नवाजा है
सामाजिक
निशानदेही
स्त्रियों के बिना
अकल्पनीय है
धैर्य का पल्लवन है वो
स्नेह और प्यार का
अतुल कोश है उसके पास
कितना भी लिखूँ
स्त्रियों को
क़लम के दायरे से
उफ़नकर
बह ही जाती हैं।
-मन की उपज