ना जाने कितने मौसम बदलेंगे
ना जाने
कितने लोगों से
कितनी
मुलाकातें बची है?
न जाने कितने दिन
कितनी रातें बची हैं?
ना जाने कितना रोना
कितना सहना बचा है?
कब बंद हो जायेंगी आँखें
किस को पता है?
कितने फूल खिलेंगे?
कब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बहलायेंगी या रुलायेंगी
किस को पता है?
जब तक जी रहा
क्यों फ़िक्र करता निरंतर
ना तो परवाह कर
ना तू सोच इतना
जब जो होना है हो
जाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा
तू तो हँसते जा गाते जा
निरंतर
जो भी मिले
उससे गले लग कर
मिल निरंतर...!!
-यशोदा
मन की उपज
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteमेरी तरफ से शुभकामनाएं
सम्हाले अपनी 'धरोहर '
ReplyDeleteकल्पित गंतव्य को
अभौतिक भवितव्य को
तू बढ़ते जा
तू हंसते जा...!!!!
बहुत सुंदर दर्शन। बधाई और आभार!!!
हम अंजान डगर के राही हैं
ReplyDeleteगंतव्य हमारा है अनिश्चित
जीवन पथ के हम
अनभिज्ञ मुसाफिर,
नियती लिए बैठी सौगातें
या फिर कोई घातें
ना हम जाने ना पहचाने
हर राह ही है अजनबी
आज बाग खिला फूलों का
कल उपवन मुरझाया
हवा लिये उडती है सौरभ
कल जैसे पतझर छाया।
दी बहुत बहुत सुंदर आध्यात्मिक पुट लिये अप्रतिम रचना।
आप की रचना को शुक्रवार 29 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
कितने फूल खिलेंगे?
ReplyDeleteकब उजड़ेगा बागीचा
किस को पता है?
ना जाने कितनी सौगातें
मिलेंगी?
बहुत सुन्दर....
सही कहा जो होना है हो जायेगा
जिसको मिलना है मिल जायेगा
वाह!!!!
दार्शनिक भाव लिए लाजवाब रचना....
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteभविष्य को कौन जानता है ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteगीता का सा उपदेश दे रही
ReplyDeleteज्ञान भरी सी कविता
जब तक जीना तब तक सीना
नाहक फिक्र काहे करता !
यशोदा जी, आपने तो सीधी, सरल भाषा में गीता का उपदेश दे दिया. पता नहीं क्यों हम वर्तमान और भविष्य को लेकर इतने आशंकित और इतने सहमे हुए क्यों रहते हैं? इन्सान के अलावा कोई भी प्राणी भविष्य की चिंता कर अपना चैन नहीं खोता है. मस्ती, बेफ़िक्री और ज़िन्दादिली के साथ जियेंगे तो दुश्मन भी दोस्त बन जायेंगे.
ReplyDeleteजब जो होना है हो
ReplyDeleteजाएगा
जो मिलना है मिल
जाएगा
तू तो हँसते जा गाते जा
निरंतर
जो भी मिले
उससे गले लग कर
मिल निरंतर...!!--
बहुत खूब आदरनीय दीदी -- बहुत हे सार्थक रचना | बधाई -----
जीवन में आशाओं और निराशाओं की कशमकश से निकलकर अंत में रचना दिशा भी दिखाती है। यही निखार है सर्वोत्तम सृजन का।
ReplyDeleteफ़लसफ़ा जो विकसित हुआ है कि हर पल जियो जिंदगी का...... मुकम्मल संदेश है।
लाजवाब है मन की उपज की प्रस्तुति।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
सुंदर रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/50.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है http://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/50.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteBahut sundar rachna
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