एक और शाम
उतर आयी आँखों में
भर गयी नम किरणें
खुला यादों का पिटारा...
भीग गयी पलकें
फैलकर उदासी
धुंधला गयी चाँद को
झोंका सर्द हवा का
लिपटकर तन से
छू गया अनछुआ मन
ठंडी हथेलियों को चूम
चाँदनी महक गयी
ओढ़ यादों की गरमाहट
लब मुस्कुराये
जैसे हो स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा
- यशोदा
मन की उपज
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-12-2017) को
ReplyDelete"रंग जिंदगी के" (चर्चा अंक-2818)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआप की रचना को शुक्रवार 15 दिसम्बर 2017 को लिंक की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुन्दर
ReplyDeleteएक एक शब्द भावना में डूबकर मन में समाता हुआ बहुत शानदार रचना।
ReplyDeleteकमाल लिखती है आप...... बेमिसाल
बहुत खूबसूरत...कम शब्दों में पुरी भावनाओं का रस मिला दिया आपने..!
ReplyDeleteखुला यादों का पिटारा
ReplyDeleteभीग गयी पलकें
वाह!!!!
लाजवाब यादें...
बहुत सुन्दर
अंतर्मन को स्पर्श करती सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसादर
ठंडी हथेलियों को चूम
ReplyDeleteचाँदनी महक गयी
ओढ़ यादों की गरमाहट
लब मुस्कुराये
जैसे हो स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा
अनुपम, अभिनव।